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आत्मविलास]
[२०० हैं और लोक-परलोक दोनों ही खो बैठते हैं। यह नियम है कि किली स्थानकी वायु सूर्यतापसे हलकी होकर जब ऊपर उठ जाती ह तव चारों ओरसे वायु उस खाली स्थानका घेरनेके लिये दौडती है। इसी प्रकार तुम्हारा कर्तव्य है कि तुम श्राप ऊँचे उठो, अपना स्थान खाली करो, आप दृष्टान्तरूप बनो, फिर दूसरे अपने आप तुम्हारी खाली जगह घेरनेके लिये दौडेंगे, अपने-आप तुन्हारा अनुसरण करेंगे। परन्तु शोक । कि तुम स्थान तो घेरे वैठे हो और अपना स्थान खाली करनेसे पहले ही दूसरोंको उठाना चाहते हो, दूसरे उठे तो कैसे ?
खैर ती हमको तो जाना था कहीं और चले गये कही और, पाठक जमा करे। श्राशय यह था कि जिसके मनको जिसके चरित्र भाये उसी रूपमें उसका मन अटक गया, वही छवि हृदयमें घर कर गई। अब उस प्यारेकी स्मारक रूपसे कोई वस्तु सम्मुख आई कि मन फूट पड़ा, हदय वह निकला। प्यारेका पत्र आया, प्यारेकी झॉकी खिॉमे समा गई, ऑखें टिमटिमाने लगी, अब पत्र कौन पढ़े ! वे धार्मिकग्रन्थ, जिनमें इष्टदेवके गुणानुवादोंका वर्णन होता है, उसके पत्र ही हैं, जिनके द्वारा उसका प्रेमसन्देश मिलता है। जाना आखिर न यह कि फोड़ की तरह फट बहे। हम भरे बैठे थे क्यों आपने छेड़ा हमको ।
किसी प्रेमीका फोटो, जिसने हमारा चित्त चुरा रक्खा हो और जो सदाके लिये हमसे मुंह छुपा बैठा हो, हमारी आँखोंके सामने आ गया, झट हृदय उसके रूप, गुण व स्वभाव से भरपर हो गया। यह लो। प्रमका दरिया किनारे तोडकर वहने लगा, अव चाहे कोई इसको बुतपरत्ती कहे, चाहे काल परस्ती। इस परस्तीको कोई लाख दवानेका यत्ल करे, यह दव