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[साधारण धर्म रामने तो एक तपस्वीकी स्त्री (अहिल्या) का ही उद्धार किया परन्तु 'नाम'ने करोड़ों दुष्टोंकी कुबुद्धियोंका सुधार कर डाला । रामने ऋपि (विश्वामित्र )के लिये ताड़काकी सेनासहित और उसके पुत्र सुवासहित समाप्ति की ॥१५॥
सहित दोष दुःख दास दुराशा । दलई नाम जिमि रवि निशि नाशा ! भञ्जउ राम आप शिव पापू ।
भव भय मञ्जन नाम प्रतापू ॥१६॥
परन्तुः-'नाम' तो भक्तोंके दोप, दुःख, दासभाव अर्थात् दीनता और दुराशाओंको सहज ऐसे ही नष्ट कर देता है जैसे मूर्य रात्रिको। रामने स्वयं एक शिवधनुपको हो तोड़ा, परन्तु 'नाम'का प्रभाव ऐसा है कि संसारके जन्ममरणरूपी भयको ही काट डालता है ।।१६|
दण्डक . वन प्रभु कीन सुहावन जन मन अमित नाम किये पावन ॥ निशिचर निकर दले रघुनन्दन ।
नाम सकल कलि कलुष निकन्दन ॥१७॥
प्रमुने स्वयं वास करके एक दण्डक वनको ही सुहावना किया, परन्तु 'नाम'ने तो भक्तोंके अनन्त मनरूपी दण्डकोंको पवित्र कर दिया । श्रीरघुनाथजीने कुछ राक्षसोंकी सेनाको ही चूणे किया, परन्तु नाम तो कलियुगके सब पापरूपी राक्षसोंको जड़से ही उखाड़ ढालनेवाला है।॥१७॥