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श्रात्मविलास ]
[१६४ प्रकारके हैं और चारों हो पुण्यात्मा, निष्याप और उदार हैं। ॥॥ ये ये हैं:-(१) आर्त, (२) अर्थार्थी (३) जिज्ञासु और (8) ज्ञानी । (गीता अ. ७ श्लो. १६)
चहुँ चतुरनको नाम अधारा । ज्ञानी प्रभुहिं विशेष पियारा ॥ चहुँ युग चहुँ श्रुति नाम प्रभाऊ । कलि विशेष नहीं पान उपाऊ ॥ ९ ॥
चारो ही चतुर भक्तोको एक नाम ही आधार है, फिर भी जानी तो प्रभुको बहुत ही प्यारा है। चारों युगोंमे चारों वेदोंमें नामका प्रभाव प्रकट है और कलियुगमे तो नामके सिवाय कोई और उपाय है ही नहीं ॥६॥
सकल कामना हीन जे, रामभक्ति रसलीन । नाम सुप्रेम पियूष हृद, तिनहुँ किये मन मीन।
जो ज्ञानी पुरुष सकल कामनाओंसे मुक्त हैं और रामभक्तिरूपी रसमे लीन हो रहे हैं, उन्होंने तो नामरूपी सुन्दर प्रेमामृवके कुण्डमें अपने मनको मछली ही बना दिया है।
अगुण सगुण दोउ ब्रह्म स्वरूपा । अकथ अनादि अगाधि अनूपा ।। मोरे मन बड़ नाम दुहूँ ते । किये जे युग निज वश निज बूते ॥ १० ॥
निगुण और सगुण दोनों ही उस ब्रह्मके स्वरूप हैं जो अकथनीय, अनादि, अगाध और उपमारहित है। मेरे मनमें तो