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[ साधारण धर्म ऋषि-महर्षियोंके सुन्दर भाव व विचार नामके फोटोरुप पदोंद्वारा श्रुति-स्मृति आदिके रूपमे हमारेतक पहुँचाये जा रहे हैं
और पहुँचते रहेंगे। भगवानका सन्देश भगवती-गीता नामके द्वारा ही सम्पूर्ण वायुमण्डलको व्याप्त करके स्थित है और सम्पूर्ण ब्रह्माण्डमे अपनी गूज गुञ्जा रही है। इस शब्दब्रह्मको 'मेरा हार्दिक नमस्कार है।
(६) नामी ( रूप, अर्थ) के नष्ट होनेपर भी नाम शेष रहता है तथा नामी एक देशमें स्थित रहकर भी नाम देशदेशान्तरमें व्याप्त होकर रहता है। इस लिये नामीसे नाम अधिक देश तथा अधिक कालव्यापी है।
(७) जिस रूपके श्रवणजन्य अथवा नेत्रजन्य संस्कार हृदयमें हो, नामका यह अद्भुत प्रभाव है कि अपने उच्चारणके समकाल ही वह उस रूप तथा उसके गुण, कर्म और स्वभावके संस्कार हृदयमे उद्बुद्ध करके उस रूप, गुण, कर्म और स्वभावका फोटी नेत्रोंके सम्मुख खड़ा कर देता है । इससे तुरन्त ही तत्सम्बन्धी विचित्र भावॉका सञ्चार होने लगता है । नामके उच्चारणसे संस्कारका उद्बोध होता है, संस्कारके उद्बोधसे पदार्थकी स्मृति होती है, स्मृतिसे रूपगुणादिका दृश्य सम्मुख खड़ा होता है और दृश्यको उपस्थिति से भावोंका उद्गार होता है। इन सबके मूलमे एकमात्र 'नाम' ही है। इस सिद्धान्त के अनुसार ईश्वर तथा उसके भिन्न-भिन्न अवतारोंके नामस्मरणसे उनके विचित्र रूप तथा उनके भिन्नभिन्न गुण, कर्म, स्वभाव'और लीलाओंका दृश्य सम्मुख खड़ा हो जाता है और प्रेमियोंके हृदयोंमे समुद्रके समान प्रेमकी हिलोरें उठने लगती हैं । 'कृष्ण' नामका उच्चारण कृष्णप्रेमी के हृदयमें कृष्णके रूप, गण, कर्म और स्वभावका फोटो सम्मुख खड़ा कर ही देता है, जिसके प्रभाबसे उसका हृदय