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आत्मविलास ] राखि पिटारे जो अहि कारो पय पियाय अनि हित प्रतिपागे। कुल स्वभाव सोडसि भजि जाहो। यद्यपि तिन्हें लाभ कछु नाहीं । जलद सलिल वरपत चहुँ पाहीं । मरत सकल सर मरिता माहौ।। निशि दिन ताहि पपाहा ध्याचे । भाँवरि दे दे प्रीति बढावे ॥ एक बूंद को त्यहि तरसाचे । भ्रमर मालती सौ मन लावे॥ जब रस हीन होत वा माहीं । निरमोहो ताल जाहि पराहीं॥ सुनियत कथा काग पिक केरी । अण्डन सेव करावत हेरी ।। बड़े होत निज कुल उडि जाहीं । वैठत निज माता पितु पाहीं । यह सब कारे हरि पर पारे । सबहिनमें अतिहि अनियारे । सवकी उपमा अरु गुण योगु । न्याय देत पटतर कवि लोगु॥ अलिकुल अलक कोकिला बानी। भुज भुजंग तनु जलद वखानी॥ समुझी बात आज यह सारी। खानि कपटको कुजविहारी॥ मैं अब अपने मन यह ठानी। उनके पन्थ न पीऊँ पानी ॥ कबहुँ नयन न अञ्जन लाऊँ। मृगमद भूलि न अङ्ग चढ़ाऊँ ।। इस्त बले पट नील न घारौं । नयनन कारे धन न निहारौं । सुनौं न श्रवणन अलि पिक वानी। नोले तनु परसों नहीं पानी।।
कहिये। जब और अव स्थूल विद्यु तसे यह कार्य कैसे होता था १ यह नामका ही प्रभाव है कि सृष्टिके आदिसे अनन्त
१.सर्प । २. बादल । ३ फाग के भय से कोयल अपने भण्डों को उसके भण्डों में रला देती है घडे होने पर वे अपने कुल में चले जाते हैं। यही घटना कृष्ण ने कर दिखाई । ४ निगले । ५ हाथ ।