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[साधारण धर्म . , अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः ।
चत्वारि सम्प्रवर्द्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम् ।। . .अर्थः-अभिवादन (अर्थात् प्रणाम-वन्दना) करनेके स्वभाव वाले और नित्य ही वृद्धोंकी सेवा करनेवाले पुरुषको चार बातोंकी वृद्धि होती है (१) आयु (२) विद्या (३) यश और (४) बल, अर्थात् मनोवल । यह नियम है कि वृद्धोंकी सेवा आदिके द्वारा हृदय कोमल होकर सत्त्वगुणकी वृद्धि होती है । सत्त्वगुणकी वृद्धिसे आयुवृद्धि, विद्यावृद्धि, यशवृद्धि होती है और सत्त्वगुणसे ही वलकी वृद्धि होती है। रजोगुणी अभिमानरूप घमण्ड अथवा शारीरिक पुष्टिरूप वल,बल नहीं यह तो उन्टा विपरूप हैं । किन्तु सत्यता, आस्तिकता, दृढ़ निश्चय व सत्यप्रतिज्ञतारूप बुद्धिबल ही वास्तव वल है और उपर्युक्त बलवृद्धि ही उपासनाकी सहायक है।
उपासनाकी प्रथम श्रेणीकी उपयुक्त सामग्री सम्पादन द्वितीय श्रेणी, श्रवण-1 करते हुए भी जिस पुरुपका आहारभक्ति ।
व्यवहार अनियमित है, तो वह भक्तिके
... मार्ग अग्रसर नहीं हो सकता,वल्कि यह उपासनामें विघ्न है । इस लिये आहार-व्यवहारका नियमित रखना तथा दिनचर्याका शुद्ध करना परम आवश्यक है । कोल्हू के वैलकी तरह गृहस्थ अथवा मान-बढ़ाईका जूवा जिसकी ग्रीवा को खाली नहीं छोड़ता, ऐसे पुरुष इस पवित्र मार्गके योग्य नहीं हो सकते । इसीलिये भगवान्ने आज्ञा दी है :
युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु । युक्तस्वप्नावबोधस्य यांगो भवति दुःखहा।।
(गी. १ ६ श्लो )