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श्रात्मविलाम]
प्यारे विपयप्रेमी ! वैतालकी पहेलीको सुलझानेके लिये विपी-पुरुषके साथ पर- | विषयमोगका सडकपर सरपट घोडा स्पर विचारोंका परिवर्तन | दौडानेवाले भोले महेश।। थोडा दम तया इहलौकिक पदार्थो | ले । आगे बढनेसे पहले तनिक लेग्यकसे में सुखका असम्भव भी तो परस्पर विचारोंका परिवर्तन करता जा । जिस सडकसे तुम तीन वेगसे ऑखें वन्द किये दौड़े जा रहे हो, जरा देखो तो सही, क्या वह तुमको तुम्हारे निर्दिष्ट स्थानकी ओर ले जा रही है वा नहीं ? तुमने अपनी दृष्टिसे सुख की जो अवधि मानी हुई है, वह नीचे लिग्य वचनांतक ही व्याप्त है ना। पहला सुख निरोगो काया, दूजा सुख घरमें हो माया। बोजा सुख पुत्र अधिकारी, चौथा सुख सुलक्षणो नारी॥ ___और अनेक प्रकारके सुख अर्थात् 'गोधन, गजधन, चाजिधन और रत्नधन ग्वानि' तो तुम्हारी इस मायासुखक अन्तर्गत ही आ जाते हैं।
अच्छा जी । अव यह बताओ कि इन चतुर्विध सुखों मेंसे तुम प्रत्येकको सुखरूप मानते हो? अथवा इनमेंसे किन्हीं दोके जोड़ेमें अथवा तीनमें वा चारोंके समुदाय में सुख मानते हो?
यदि किसी एकको सुखरूप माना जाय तो सबके अनुभव विरुद्ध है। क्योंकि इनमेंसे एक-एक सुख बहुतोंको प्राप्त है भी, परन्तु वे दुःखी ही देखनेमें आते हैं। यदि शरीरका सुख है और पुत्र, बो तथा मायाका सुख नहीं, तो भोगसाधन विना वह निरोग शरीर भी रोगरूप हो है। जिस प्रकार जठराग्नि तीव्र हो, परंतु अन्न न मिले तो वह उल्टा शरीरको ही भक्षण करती है । घर मै मायाका सुख है, किन्तु शरीर, पुत्र व स्त्रीका सुख नहीं, तो