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[माधारण वर्म वह माया भी खानेको दौड़ती है, सुग्व नहीं देती। यदि पुत्रका सुख है, परन्तु शरीर, माया तथा स्त्रीका सुग्व नहीं, तब भी शेप पदार्थोकी इच्छा कलेजेको जलाती ही रहती है। और यदि स्त्रीका सुख है, परन्तु शरीर, धन व पुत्रका सुम्ब नही, तो वह प्राप्तमुख भी दुःखमे बदल जाता है। इस प्रकार चारोमेसे एक-एक पदार्थ तो कोई भी सुखरूप नहीं ठहरता।
लो जी ! एक-एक पदार्थ तो इनमें से कोई भी मुग्वरूप नहीं ठहरा दिखे, इनमेंसे किन्ही दोके जोड़ेमे ही सुख मिल जाय, परन्तु टोका जोड़ा भी सुख नही देता। अर्थात् शरीरसुख ब मायासुख है परन्तु स्त्री व पुत्रका मुख्य नहीं, तो शरीर व माया का सुख मुखाप नहीं रहता, बल्कि दुःखदाई हो जाता है क्योंकि भोगसाध्य-सामग्री विना साधन निष्फल है। शरीरसुख का भोग्य यदि स्त्रीसुख नहीं नो पुष्ट शरीरको देखकर जलना ही पड़ता है और मायासुखके भोगके लिये स्त्री-पुत्र नहीं तो वह माया भी पृथ्वीमें दवाये हुर मुरदेके समान है। यदि स्त्री व पुत्र का सुख है परन्तु शरीर व मायाका मुग्न नहीं, तो भोगके साधन शरीर व मायाके अभावसे वे भोग्यरूप स्त्री व पुत्र भी रोगरूप ठहरते हैं। यदि शरीर व स्त्रीका सुख है परन्तु माया व पुत्रका सुख नहीं, तो पति व पत्नी दोनों मिल-मिलकर रो-रोकर ही दिन निकालते हैं और आनेवाले बुढापे व मृत्युसे भयभीत होते हैं। यदि माया व पुत्रका सुख है परन्तु शरीर व स्त्रीका सुख नहीं, तब भी सुख कहॉ.? रोगी शरीर व कुटिला स्त्रीजन्य दुःख, मायासुख व पुत्रसुखको नीचे दवा देता है। सारांश, किसी प्रकार भी दो के जोड़ेमे सुख नहीं मिलता।
अच्छा जी! देखें,इनमेंसे किसी तीनके मेलमे ही सुख-शांति आ जाय । परन्तु हाय ! सुख-शान्ति तो फिर भी नहीं मिलती। शरीरसुख, मायासुख, पुत्रसुख, और स्त्रीसुख इनमेसे किसी