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- । साधारण धर्म
श्रेणीमें जा मिलाता है जहाँ यह निर्षियान दूसरोके हितको कुचलनेमें तत्पर रहते थे वहाँ वहन्धन अब इनको 'अपने हित के लिये परहितनाशक स्वभावमें बदल देता है । त्यागकी यह पहली भेट है जो उपर्युक्त 'सुखअभिलापी बैताल' वरवश अपने चरणोंमे रखा लेता है। अनेक प्राणी जो इस मार्गले निकले है इसकी सत्यतामे आपही दृष्टान्त है।
क्योंजी । त्यागकी पहली भेटसे वैतालको कुछ सन्तोप पतालके चरणों में स्याग | हुआ ? नहीं, बिल्कुल नहीं, इससे तो को द्वितीय भेट ___ उसके कानपर जूं भी न चली । यह भेट उसके पेटतक पहुँचना तो कहाँ ? टॉतभी न हिले, उसे तो बड़ी-बड़ी कुर्वानियाँ लेनी हैं। परन्तु हाँ! वैतालके सन्तोपके निमित्त सुईके अग्रभाग जितना जीव कुछ आगे तो हिला है।
आखिर इसे शनैः शनैः सब कुछ भेट चढ़वा लेना है। वैतालकी पहेली तो अभी ज्यूकी त्य खड़ी है । वैताल तो चाहता है सुख, और ऐसा सुख जिसका कभी क्षय न हो। सुनो तो ऐसे सुखका अधिकारी कौन है ? और आनन्दकन्द भगवानको प्रिय कौन है ? अपने श्रीमुखसे गीता अध्याय १२ मे मुक्तकण्ठसे वे क्या आना करते हैं ? वह भी तो सुन लो.___ अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च ।
निर्ममो निरहंकारः समदुःखसुखः क्षमी ।। संतुष्टः सततं योगो यतात्मा दृढनिश्चयः । मव्यक्तिमनोबुद्धिर्यो मद्भक्तः स मे प्रियः ।। यस्मानोद्विजते लोको लोकान्नोद्विजते च यः । होमर्पभयो
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