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श्रामविलास ]
[१०४ की ही शरणमें गया और उन्होंने भी प्रतिक्रियारूपमें उसको एक ऑखसे विहीन करके ही अभय किया।
ओ। धक्का देकर आगे बढ़नेवाले ! देस, वह धर्मरूपी विष्णुका प्रतिक्रियारूप सुदर्शनचक तेरे पीछे-पीछे आ रहा है। सम्पूर्ण ब्रह्माण्डमे इस सुदर्शनचक्रसे तेरी रक्षा करनेमें कोई समर्थ नहीं है । तुझको इसकी मार खानी ही पड़ेगी।
बद न बोले जेर गरदै गर कोई मेरी सुने ।
है यह गुम्बद की सदा जैसी कहे वैसी सुने । इस आकाशरूपी गुम्बदके नीचे जैसा चोलोगे लौटके येमा सुनना ही पडेगा । जिस प्रकारसे यह अपना स्वार्थ सिद्ध करनेके पीछे पड़ा हुआ है, उस प्रकारसे तो आजतक किसीने भी स्वार्थ सिद्ध कर न पाया। परन्तु दुनिया है कि अन्धेवाली लकडी हॉकती ही नाती है, भेडकी चाल चले ही जाती है, एक भेड़ कूपमें गिरी कि सब उसके पीछे दनादन गिरती ही जाती हैं। ठीक, यही हाल इस दुनियाँका है। भाई। स्वार्थ पकड़े रहकर स्वार्थ वनानेके पीछे पड़े रहना, तो स्वार्थ बनानेका कोई मार्ग है ही नहीं। फिर तुम कैसे स्वार्थ सिद्ध कर जाओगे ? यह तो आकाशमे वगीचा लगानेके समान है। और तुम तो इससे भी आगे बढ़कर, दूसरोके स्वार्थको कुचलकर, अपना स्वार्थ सिद्ध करनेके पीछे पड़े हुए हो। स्वार्थ वनानेका तो एकमात्र मार्ग यही है कि स्वार्थका परित्याग कर दो, स्वार्थ आप सिद्ध हो जायगा। जैसे जवतक तुम कमानको खीचे हुए हो, तीर कभी
को नहीं बेध सकेगा, बल्कि तुम्हारे पास ही रहेगा। लक्ष्य को भेदना चाहते हो तो कमानको ढीली छोड़ो, तभी तुम
बुग, खोटा। नीचे । ३ आकाश । ४ जो । ५मान्द ।
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