________________
.
[ माधारण धर्म है पार्थ न मर्व भूतोंमें मनातन वीजरूपस मुझको ही जान नया बुद्धिमानाम बुद्धि और तेजस्वियों में तेजरूप में ही हूँ।
जो शक्ति अग्निमें 'उष्णता, 'जलमें 'द्रवत्ता, पृथ्वीम जइना, वायुमें सन्द, और प्राकशिम शून्यता रूपसे विराजमान है । जिस शक्तिके अधीन ब्रह्मा रूपसे 'सृष्टिको उत्पत्ति, विष्णु रूपमे पालन और शिव रूपसे महार हो रहा है। जो शक्ति भोजन वनके ग्वाई जा रहोगहै, जठराग्निरूपम जसको एका रही है,रमरूपमें बदल रही है रक्तरूपसे नाड़ियाम दौडरही है, मांसलमे शरोस्को पुष्ट करारही है, वीर्यरूप मेवल दे रही है, नेत्रमें हाकर देख रही हैं, श्रोत्रमै होकर मुन रही है, ग्राणमें होकरः सूघ नही है, रसनारूपमें बाँद ले रही है, त्वचालपमे, छू रही है, जो सबमें सब कुछ है, वह भक्ति ही धर्म शब्दका मुख्य अर्थ है। - - - - अहं.सर्वस्यै प्रभवो मत्तः सर्व प्रवत
. ।इति मत्वा भजन्त माधुधा भीर्वसमन्विताःगी...।
अथे. मुझसे ही सर्व जगतकी उत्पत्ति हुई है और मेरे से हो सब चेष्टाएँ होती है, ऐसा- मानकर भावमयुक्त बुद्धिमान मुंमको भजते है।
" काले जिसको भृकुटिविलास है और क्षण-क्षणं करके पल, घड़ी,प्रहर, दिन-रात, तिथि, पक्ष, मास, उत्तरायण, दक्षिणायन, वर्ष, मन्वन्तर,युग और सर्गरूपमें जिसके अधीन नृत्य करें रहा है। श्रुति, स्मृति, पुराणादि जिसके चन्द्रीगणे हैं और निरन्तर जिसकी स्तुति करते रहते हैं।जों उत्पन्न नहीं हुआ और नित्यनूतन है, इसीलिये इसको सनातन धर्म के नामसे अभिहित किया गया है। अटकेसेंकटक और महिमालयसें रासकुमारीतक हो जिसका राज्य नहीं, बल्कि मब देश, सब काल और लव वस्तुपर जिसका अधिकार है। हिन्दूमात्रसे
.44
-
.
FA