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[ साधारण धर्म जीवनका उद्देश्य केवल विषयभोग हो है और जो केवल शिश्नोदरपरायण हैं। विषयभोगकी पूर्तिमे जिन्होंने पशुओंको भी पीछे छोड़ दिया है । जिन्होंने विषयोंकी धधकती हुई प्रचण्ड अग्निमे तन-मनकी आहुति देनेके लिये कुलकी मर्यादाको नमस्कार कर लिया है, जातिकी मर्यादाको ठुकरा दिया है, लोकमर्यादाको दूरसे ही हाथ जोड लिये हैं और धर्मकी नीतिको भी चुपकेसे ताकमे तह करके रख दिया है। सब प्रकारके वन्धनोंसे छुटकारा पा लिया है और मव मर्यादाओं से आजाद हो गये हैं। परन्तु:क्या यह आजादी हैं ? हाय ! यह तो आजादी नहीं । गोयेचोगों की परेशानी है, आजादी नहीं ॥ अस्प हो आज़ाद, सर पर कैद होता है सवार । अस्प हो मुलक-इनाँ हैरान , रोता है सवार ।। इन्द्रियोंके घोड़े छुटे वाग-डोरी तोड़ · कर । वो गिरा ! वो गिर पड़ा !! अस्वार सर-मुंह फोड़ कर ।।
मैया घोड़ेको आजाद करके आजाद होना चाहते हो, काँटेदार झाड़ियोंमें फंसोगे, गड्ढोंके अन्दर धसोगे, सिरमुँहकी खाओगे, जहाँ दॉत पीसना ही होगा। इस प्रकार मर्यादारूप बन्धनोंको तोड़कर वो उल्टा बन्धनोंमें फंसना पड़ेगा । यह गोरखधन्धा किसी ऐसे-वैसेका रचा हुआ नहीं, जो सहज ही निकल भागोगे । अपने-आप यह गोरखधन्धा नहीं सुलझने का।
१ मैदानका गेंद, अर्थात् फुटबाल । २ घोड़ा । ३ खुली लगामवाला।
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