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[साधारण धर्म पकड़कर खींचनेसे सारी जखीर खिची चली आती है, अथवा मनुप्यकी एक अङ्गुली पकड़कर खीचनेसे शेप सब श्रङ्ग खिंचा चला आता है, धर्मके सब अङ्गोंमें भी पररपर ऐसा ही घनिष्ट सम्बन्ध है । इसी लिये आवश्यकता है धर्मके किसी भी अङ्गको वास्तविक रूपसे व्यवहारमें लाने की, हाथ-पॉवमे इतर आने की। फिर शेष सब अङ्ग अन्दरने इसी प्रकार निकल पड़ेंगे, जैसे छोटेसे वीजसे बड़ विस्तारवाला वृक्ष निकल पडता है। अग्निकी एक चिनगारी भी यदि जीती-जागती है तो वह सम्पूर्ण ब्रह्माण्डको भस्म करनेमे समर्थ है । इसी प्रकार धर्म का कोई भी अग वास्तविकरूपमै वर्ता हुआ दुःखरूप संसार को भस्मकर निरन्तर अक्षय आनन्द्रकी मॉकी करा सकता है। प्रकृतिदेवीने इस जीवको शिवरूपमें पहुँचानका भार तो अपन सिरपर उठा ही लिया है, अब जरूरत है मागे चल पड़ने की, जिस स्थानपर हम बड़े हुए हैं उमसे आगे कदम उठान की। यदि आपको छतके ऊपर चढ़ना मंजूर है तो आपको चाहिये कि अपना एक कदम सबसे नीची पौड़ीपर मजबूतीसे जमा ले, जब इस पौड़ीपर कुटम जम गया तो दूसरा कदम बिना किसा रोक-टोकके अपने-आप उठकर दूसरी पौड़ीपर पहुँच जायगा । इस प्रकार आप खट-खट करते हुए बिना किसी वाधाकं छतपर पहुँच जायेंगे। इसके विपरीत यदि अापने वीचकी किसी पौड़ी को छोड़कर छलॉग मारकर जानेकी चेष्टा की तो आप धमसे उल्टा नीचे गिर पड़ेंगे और सिर फुड़ा लेगे। अन्तत. छतपर पहुँचनेके लिये आपको इस पौडीपर पॉव टिकाकर ही जाना होगा, फिर, गुफ्तम सिर मुड़ानसे क्या लाभ ? ठीक, इसी प्रकार यदि आप नाम-रूप मंसारसे ऊपर जाना चाहते है तो
आपको चाहिये कि जिस सोपान (पौडी) पर आप अपना पॉव टिका सकते हैं, उसपर दृढ़तापूर्वक अपना पाँव जमा ले । यह