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अात्मविलास]
[७२ अर्थात् 'खोना ही पाना है' । जेसा वीज होगा वेमा ही उससे फल निकलेगा। धन देगे, धन पायेंगे, भूमि देंगे, भूमि पायेगे, शारीरिक सेवा देगे, सेवा पायेंगे, विद्या देगे विद्या पायेगे; मुख देगे, सुख पायेगे, दु ग्व देंगे, दुग्व पायेगे, शान्ति दंगे, शान्ति पायेगे, इच्छाका त्याग करेंगे, इच्छित पदार्थ पायेंगे।
घर मिले उसे, जो अपना घर खोवे है । जो घर रक्खे, सो घर घर में रोवे है। जो राज तजे, वह महाराज करे है । धन तजे, नो फिर दौलत से घर भरे है ।। सुख तजे, तो फिर औरों का नख हरे है। जो जान तजे, वह कभी नहीं मरे है। जो पलङ्ग तजे, वह फूलों पे सोवे है । जो घर रक्खे, वह घर घर में से है ॥१॥... जो पर दारा को तजे, वह पावे रानी । और झूठ वचन दे त्याग, सिद्ध हो वाणी ॥ जो दुर्बुद्धि को तजे, वही है ज्ञानो । मन से हो त्यागी, ऋद्धि मिले मनमानो। '
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१. निग अचल सुरख । २. संसारसम्बन्धी महन्ता-ममता ३ प्रत्येक योनि ।।