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[ साधारण धर्म जो सर्व तजे, उससे का सब कुछ होवे है । जो घर रखे, सो घर घर में रोवे है ।।२।। जो इच्छा नहीं करे, वह इच्छा पावे । अरु स्वाद तजे, फिर अमृत भोजन खाने । नहीं मोंगे, तो फल पावे जो मन भावे । हैं त्याग में तीनों लोक, वेद यही गावे ॥ जो मैला होकर रहे, वह दिल धोवे है । जो घर रक्खे, सो घर घर में रोवे है ||३||
धनादिक संसारके यावत् भोग्य-पदार्थ के सम्बन्धसे किस प्रकार हमको सुख मिलता है ? इस विपयपर यदि विचार किया जाय तो स्पष्ट होगा कि मंसारके भोग्य-पदार्थ केवल उनी कालमें हमको सुावी करेंगे, जबकि उनका त्याग किया जायगा, उन्हें वो जायगा अथवा नष्ट किया जायगा । जिस प्रकार दीपक मे रौशनी पानके लिय तेल व बत्तीका जलना जरूरी है, तेल व बत्तीको बनाये रखकर दीपक प्रकाश नहीं दे सकता । ठीक, इसी प्रकार भोग्य-पदार्थोंसे भी सुख प्राप्त करनेके लिये इनका नष्ट किया जाना, अर्थात् उपयोगरूपी अग्निपर इनकी धूप-दीप करना बहुत-बहुत जरूरी है। इनको बनाये रखकर इनसे कदापि सुख प्राप्त नहीं किया जा सकता, प्रकृतिका कुछ ऐसा ही नियम है। इस विषयको स्पष्ट करनेके लिये एक कहानीका सहारा लिया जायगा।
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1. अर्थात् जो संसारसे उदासीन रहे ।