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श्रामविलास ] धर्म व सत्य है, वहीं मुन व गानित गलिय नि गमे हमको हमारा जीवनफल प्राप्त होता है, उनका रूपमको कुछ जानना चाहिये। _ 'धर्मी शब्दका अर्थ है, 'येनेतद्धार्यतन धर्म। श्रागय याः कि जिस शक्तिद्वारा या संसार वारया किया जा स- बही शक्ति 'धर्म' शब्दका मुत्र प्रय। जो गान प्रारुपाणविकर्पण (राग-द्वेप) प्रर्थात Attitletin & Repulsion की ममताद्वारा पृथ्वी, नक्षत्र, मय, चन्द्रमा पार्टिशो शून्य प्रकाशमे लटकाये हुए है, मानो किमी विचित्र कारीगरने छतम निरोधार गोले लटका दिये हो । जो शांक शून्यमें सूर्यको अपने फेन्द्र में घुमा रही है और गली श्रादि नानोपनी अपनी कक्षामें सूर्यके इर्द-गिर्द धुमा दी है। शक्ति ध्या में गंधरूपस, जलमे. रमरूपसे, मूर्य व चन्द्रमामे प्रकाशरूप से, पवनमें स्पर्शरूपसे और: अाकाशमें शब्दरूपसे . विराज: रही है.। यथा
रसोऽहमप्सु कौन्तेयं प्रभास्मि शशिमययोः। -- 'प्रणवः सर्ववेद" शब्दावे पौरुष नृप ।
पुण्यो गन्धः पृथिव्या च तेजश्चास्मि विभावसौ ! • जीवनं सर्वभूतेषु : तपश्चास्मि तपस्विपु ना बीजं मां सर्वभूतीनों विद्धि पाथै सनातनम् । (गो. :
बुद्धिबुद्धिमतामस्मि तेजातेजस्वितामहम् ॥ पलो. २०२४) अर्थः ह कौन्तेय ! जलमें रसरूप, सूर्य-चन्द्रमामें प्रकाशरूप, सम्पूर्ण वेदोंमें प्रणवरूप, आकाशमें 'शब्दरूप, मानध्याम बलरूप, पृथ्वीमें पवित्र गंध, अग्निमें तेज, सर्व मतोंमे जीवन और तपस्वियोंमें वपरूप मैं ही हूँ। सारांश,
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