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श्रामविलास ]
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साधारण धर्म संसारमें ब्रह्मासे लेकर चिउँटीपर्यन्त प्राणीमात्री प्रणीमात्रका धेय | दौड़धूप दिन-रात, आठ पहर, चौमठ घड़ी केवळ सुख है। बल्कि प्रत्येक क्षण, किस पदार्थके लिये हो रही है ? वह कौन मधुर वस्तु है जो अपने लिये प्रत्येक प्राणीके जीवनको कटु बना रही है ? मुख, केवल मुख । यद्यपि प्रत्येक प्राणीकी चेष्टा दिन-रात अपने-अपने विचरानुसार भिन्न-भिन्न हो रही हैं, परन्तु निर्दिष्ट स्थान सबका केवल सुख है, अन्य कुछ नहीं । ब्रह्मा सृष्टिको उत्पन्न कर रहा है । पृथ्वी अपने सिरपर पहाड़ों व घृतोंको धारण किये नाच रही है। समुद्र उछल रहा है। सूर्य तपा रहा है । चन्द्रमा अपनी शीतल किरणोंका प्रसार कर रहा है। नदिया पहाडोंसे तीव्र गति से उतरकर समुद्रकी ओर दौड़ रही हैं। बुलबुलें चहचहा रही हैं । चिउँटियाँ दिन-रात दौड़ रही हैं । कीट रेंग रहे हैं। बीज पृथ्वीमें पड़ते ही फलनेके लिये उतावला हो रहा है। माता प्रसवकी वेदना सह रही है । तपस्वी पञ्चाग्नि ताप रहे हैं। राजाओंमें युद्ध हो रहा है और पृथ्वीको रकसे सींचा जा रहा है। इधर ऊँचे-ऊँचे महलोंको त्यागकर विकट जगलों में डेरा लगाया जा रहा है। बाजारोंमें विचित्र ही लेन-देमकी चहल-पहल हो रही है। अदालतोंमें घमसान मच रहा है, बजों, वकीलों, मुद्दई, मुद्दायलोंकी छेड़-छाड़ हो रही है, एकदूसरेफो झुटला रहा है। इधर मत-मतान्तरोंका झगड़ा चल रहा है। सारांश, कहाँतक वर्णन किया जाय न जाने संसार में प्रत्येक जण कितनी असंख्य चेष्टाओंका प्राकट्य हो रहा