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[ साधारण धर्म होगा, कौन गिनती कर सकता है ? परन्तु प्रत्येक चेष्टाद्वारा माक्षात अथवा परम्परासे जो वस्तु बटोरी जा रही है, वह केवल सुख है।
गावन तुध न पवन पाणी वसन्तर, गावन तुध न राजा धर्मद्वारे। गावन तुध नॅ चित्रगुप्त लिख जाणे, लिख लिख धर्म विचारे । गावन तुध नॅ पण्डित पढन ऋषीश्वर, जुग जुग वेदा नाले । गावन तुध न मोहनियाँ मन मोहन, स्वर्गा मच्छ पियाले । गावन तुध नॅ रल उपाय तेरे, अठसठ तीरथ नाले । गावन तुध न जोधा महावलसूरा, गावन तुध न खाणी पारे । गावन तुघ ने खण्ड मण्डल ब्रह्मण्डा, कर कर रक्खे बेरे धारे। . सेई तुध न गावन जो तुध भावन, र तेरे भक्त रसाले । होर केते तुघ ने गावन से मैं चिच न श्रावन, नानक किया विचारे ।
(गुरुग्रन्थसाहिब मोहल्ला पहला )