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तीर्थकर चरित्र
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देखे । देवी ने उन स्वप्नों का सारा हाल प्रभु से कहा, तब प्रभु ने कहा-"तुम्हारे चक्रवर्ती पुत्र होगा । समय आने पर पूरब दिशा जिस तरह सूरज को जन्म देती है उसी तरह सुमंगला ने भी अपनी कान्ति से दिशाओं को प्रकाशमान करनेवाले भरत और ब्राह्मी नामके दो युग्म बच्चों को जन्म दिया । सुनन्दा ने भी सुन्दर आकृतिवाले बाहुबलि
और सुन्दरी नामक युग्म सन्तान को जन्म दिया । उसके वाद सुमंगलाने ४९ युग्म बालकों को जन्म दिया। इस प्रकार भगवान ऋषभदेव के एक सौ पुत्र और दो पुत्रियां हुई।
समय की विषमता के कारण अव कल्पवृक्ष फल रहित होने लग गये । लोग भूखों मरने लगे और हाहाकार मच गया । इस समय ऋषभदेव की आयु वीस लाख वर्ष की हो चुकी थी । इन्द्रादि देवों ने आकर ऋषभदेव का राज्याभिषेक किया । राजसिंहासन पर बैठते ही ऋषभदेव ने भूख से पीड़ित लोगों का दुःख दूर करने का निश्चय किया । उन्होंने लोगों को विद्या और कला सिखला कर परावलम्बी से स्वावलम्बी बनाया और लोकनीति का प्रादुर्भाव कर अर्मभूमि को कर्मभूमि में बदल दिया । भगवान ने अपने बड़े पुत्र भरत को निम्न ७२ कलाएँ सिखलाई
१ लेख, २ गणित, ३ रूप, ४ नाटय, ५ गीत, ६ वाद्य, ७ स्वर जानने की कला, ८ ढोल इत्यादि बजाने की कला, ९ ताल देना, १० इत, ११ वार्तालाप की कला, १२ नगर के रक्षा की कला, १३ पासा खेलने की कला, १४ पानी और मिट्टी मिलाकर कुछ बनाने की कला, १५ अन्न उत्पादन की कला, १६ पानी उत्पन्न करने की और शुद्ध करने की कला, १७ वस्त्र बनाने की कला, १८ शय्या निर्माण करने की कला, १९ संस्कृत कविता बनाने की कला, २० प्रहेलि रचने की कला, २१ छंद विशेष बनाने की कला, २२ प्राकृत गाथा रचने की कला, २३ श्लोक बनाने की कला, २४ सुगन्धित पदार्थ बनाने की कला,