________________
आगम के अनमोल रत्न
चातुर्य सब को आनन्द देने वाला था । भगवान का लालन-पालन पांच धाइयों के संरक्षण में होने लगा। क्रमशः भगवान ने चाल्यकाल को पार कर युवावस्था में प्रवेश किया।
____ जब भगवान की उम्र एक वर्ष से कुछ कम थी तव की बात है कि एक युगल अपनी युगल सन्तान को ताड़वृक्ष के नीचे रखकर क्रीडा करने की इच्छा से कदली-गृह में गया। हवा के झोंके से एक पक्व ताड़ का फल वालक के सिर पर गिरा । सिर पर चोट लगते ही बालक की मृत्यु हो गई। अब बालिका माता-पिता के पास अकेली रह गई । थोड़े दिनों के बाद बालिका के माता-पिता का भी देहांत हो गया । बालिका अपने साथी एवं भांबाप के अभाव में अकेली पड़ गई। वह अब अकेली ही वनदेवी की तरह घूमने लगी। देवी की तरह सुन्दर रूपवाली उस बालिका को युगल पुरुषों ने आश्चर्य से देखा
और फिर वे उसे नाभि कुलकर के पास ले गये । नाभि कुलकर ने उन लोगों के अनुरोध से वालिका को यह कह कर रख लिया कि भविष्य में यह ऋषभ की पत्नी होगी। इस कन्या का नाम सुनन्दा रक्खा गया।
कालान्तर में २० लाख वर्ष कुमार अवस्था में रहने के बाद सौधर्मेन्द्र ने आकर भगवान का विधिपूर्वक सुनन्दा और सुमंगला के साथ विवाह कर दिया। यहीं से विवाह प्रथा प्रारंभ हुई । ऋषभ देव अपनी दोनों पत्नियों के साथ सांसारिक सुखों का अनुभव करते हुए रहने लगे। अपनी पत्नियों के साथ भोगविलास करते हुए भगवान के कुछ कम छः लाख वर्ष व्यतीत हुए उस समय वाहु और पीठ के जीव सर्वार्थसिद्ध विमान से च्युत होकर सुमंगला की कोख में युग्म रूप से उत्पन्न हुए और सुवाहु तथा महापीठ के जीव भी उसी सर्वार्थसिद्ध विमान से च्यवकर सुनन्दा की कोख से उत्पन्न हुए । सुमंगला ने गर्भ के महात्म्य को सूचित करने वाले चौदह महास्वप्न