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आगम के अनमोल रत्न
उन्होंने उस दिशा की ओर सात आठ कदम आगे बढ़कर तीर्थकर देव को नमस्कार किया और भगवान को 'णमोत्थुणं अरिहताणं ...'इस पाठ से स्तुति की।
इसके वाद घण्टा की महान आवाज से तथा सेनापतियों द्वारा की गई घोषणा से देवता एकत्रित हो गये और भगवान का जन्मोत्सव करने के लिये उत्सुक हो अपने-अपने इन्द्र के साथ चलने को तैयार हो गये। उन्होंने तत्काल आभियोगिक देवताभों से अपने अपने असंभाव्य और अप्रतिम विमान तैयार करवाये और एकत्रित हुए देवताओं तथा अपनेअपने परिवार सहित अपने-अपने दिव्य यान-विमान में बैठकर भगवान के जन्मोत्सव के लिये रवाना हुए। उन इन्द्रो में वैमानिकों के १० भवनपतियों के २०, व्यंतरों के ३२, और ज्योतिषियों के २ इस प्रकार ६४ इन्द्र मिलकर जन्मोत्सव मनाने के लिये मेरु पर्वत पर एकत्रित हुए। इन इन्द्रों ने भगवान का जन्माभिषेक किया। उसके के बाद शकेन्द्र ने अपने पाँच रूप बनाकर एक रूप में भगबानको अपनी गोद में लिया दूसरे रूप में छन, चमर, और वज्र लेकर आकाश-मार्ग से चलकर भगवान के जन्मस्थान पर आया और भगवान के पूर्व स्थापित विम्ब को हटाकर भगवान को माता के पास सुलाया और माता की अवस्थापिनी निद्रा दूर की। शकेन्द्र ने भगवान के सिरहाने वस्त्र युगल और कुण्डल रक्खे तथा भगवान की दृष्टि में आवे वैसा रत्नमय गेंद लटकाया । ____ इसके बाद कुबेर को आज्ञा देकर ३२ करोड सुवर्ण, रत्न, चान्दी एवं ३२ नन्दासन और भन्नासन तथा अन्य अनेक दिव्य सामग्री से भगवान का घर भरवा दिया। इसके बाद आज्ञाकारी देवों से शकेन्द्र ने यह घोषणा करवाई कि यदि किसी भी देव ने भगवान का या भगवान की माता का अनिष्ट चिन्तन किया तो उसे सौधर्मेन्द्र कठोर दण्ड देंगे उसके सिर के टुकड़े-टुकड़े कर देंगे ।
इस प्रकार की घोषणा के बाद इन्द्र ने भगवान के अंगूठे में अमृत भर दिया। तीर्थकर माता का स्तनपान नहीं करते अतः वे अमृतमय