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युगवीर-निवन्धावली
उसकी नीतिका अनुसरण करनेवाला - एक भी जैनमन्दिर नही है ' । लोगोने बहुधा जैनमन्दिरोको देव-सम्पत्ति न समझकर अपनी घरू सम्पत्ति समझ रक्खा है, उन्हे अपनी ही चहल-पहल तथा आमोद-प्रमोदादिके एक प्रकारके साधन बना रक्खा है, वे प्रायः उन महोदार्य - सम्पन्न लोकपिता वीतराग भगवानके मन्दिर नही जान पडते, जिनके समवसरण मे पशु तक भी जाकर बैठते थे, और न वहाँ, मूर्तिको छोडकर, उन पूज्य पिताके वैराग्य, औदार्य तथा साम्यभावादि गुणोका कही कोई आदर्श ही नजर आता है । इसीसे वे लोग उनमे चाहे जिस जैनीको आने देते हैं और चाहे जिसको नही । कई ऐसे जैनमन्दिर भी देखनेमे आये हैं जिनमे ऊनी वस्त्र पहने हुए जैनियोको घुसने भी नही दिया जाता । इस अनुदारता और कृत्रिम धर्मभावनाका भी कही कुछ ठिकाना है । ऐसे सब लोगो को खूब याद रखना चाहिये कि दूसरो के धर्म - साधनमे विघ्न करना - बाधक होनाउनका मन्दिर जाना बन्द करके उन्हे देवदर्शन आदिसे विमुख रखना, और इस तरहसे उनकी आत्मोन्नतिके कार्यमे रुकावट डालना बडा भारी पाप है ।
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अजना सुन्दरी ने अपने पूर्वजन्ममे थोड़े ही कालके लिए, जिन प्रतिमाको छिपाकर, अपनी सौतन के दर्शन-पूजनमे अन्तराय डाला था, जिसका परिणाम यहाँ तक कटुक हुआ कि उसको
१ चॉदनपुर महावीरजीके मन्दिरमे तो वर्ष भरमें दो-एक दिनके लिये यह हवा आ जाती है कि सभी ऊँच-नीच जातियोके लोग विना किसी रुकावटके अपने प्राकृत वेषने — जूते पहने और चमड़े के डोलआदि चीजें लिये हुए वहाँ चले जाते हैं और अपनी भक्तिके अनुसार दर्शन-पूजन तथा परिक्रमण करके वापिस आते हैं।