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युगवीर-निवन्धावली
प्रियतमा मदनवेगासे पूछा और मदनवेगा यथायोग्य विद्याधरोकी जातियोका इस प्रकार वर्णन करने लगी
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"प्रभो । ये जितने विद्याधर है वे सब आर्यजातिके विद्याधर हैं । अब मैं मातग [ अनार्य ] जातिके विद्याधरोको बतलाती | आप ध्यानपूर्वक सुने -
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"नील मेघके समान श्याम नीली माला धारण किये मातग स्तभके सहारे बैठे हुए ये मातग जातिके विद्याधर हैं ॥१४- १५॥ मुर्दो की हड्डियों के भूषणोसे भूपित भस्म (राख) की रेणुओसे मटमैले और श्मशान [ स्तभ ] के सहारे बैठे हुए ये श्मशान जातिके विद्याधर हैं ||१६|| वैडूर्यमणिके समान नीले-नीले वस्त्रो - को धारण किये पांडुर स्तभके सहारे बैठे हुए ये पाडुक जातिके विद्याधर हैं ||१७|| काले-काले मृगचर्मोको ओढे, काले चमडेके वस्त्र और मालाओको धारे कालस्त भका आश्रय ले बैठे हुए ये कालश्वपाकी जातिके विद्याधर हैं || १८ || पीले वर्णके केशोसे भूषित, तप्त - सुवर्णके भूपणोके धारक श्वपाक विद्याओके स्तभके सहारे बैठनेवाले ये श्वपाक जातिके विद्याधर हैं ॥ १६ ॥ वृक्षोके पत्तोके समान हरे वस्त्रोके धारण करनेवाले, भांति-भांति के मुकुट ओर मालाओके धारक, पर्वत- स्तभका सहारा लेकर बैठे हुए ये पार्वतेय जातिके विद्याधर हैं ||२०|| जिनके भूषण वाँसके पत्तोके बने हुए हैं, जो सब ऋतुओके फूलोकी माला पहिने हुए हैं और वश - स्तभके सहारे बैठे हुए हैं वे वशालय जातिके विद्याधर हैं ||२१|| महासर्प के चिह्नोसे युक्त उत्तमोत्तम भूषणोको धारण करनेवाले वृक्षमूल नामक विशाल स्तभके सहारे बैठे हुए ये वार्क्षमूलक जातिके विद्याधर हैं ||२२|| इस प्रकार रमणी मदनवेगा द्वारा अपने-अपने वेष और चिह्नयुक्त भूषणोसे विद्याधरोका भेद जान