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श्री आदिनाथ - चरित
हर जगह पैसेहीका खयाल नहीं करना चाहिए । दयाधर्मका भी विचार रखना चाहिए । मुनि महाराजके समान निष्परिग्रहियोंकी चिकित्सा धन प्राप्तिकी आशा छोड़कर करना चाहिए । अगर तुम ऐसे मुनियोंकी भी चिकित्सा निर्लोभ होकर नहीं करते हो तो तुम्हें और तुम्हारे ज्ञानको धिक्कार है ।"
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जीवानंदने कहा :- " मुझे खेद है कि, मुनिकी चिकित्सा के लिए जो सामग्रियाँ चाहिएँ वे मेरे पास नहीं हैं । मेरे पास केवल लक्षपाक तैल है । गोशीर्षचंदन । गोशीर्षचंदन और रत्नकंबल नहीं हैं। अगर तुम ला दो तो मैं मुनिका इलाज करूँ । "
पाँचों मित्र दोनों चीजें ला देना स्वीकारकर वहाँसे रवाना हुए। फिरते हुए एक वृद्ध व्यापारीके पास पहुँचे । व्यापारीने कहाः – “ प्रत्येकका मूल्य एक एक लाख स्वर्ण मुद्राएँ हैं । ” उन्होंने कहाः - " हम मूल्य देने को तैयार हैं । " " व्यापारीने कहा :- " ये चीजें तुम किसके लिए चाहते हो १ " उन्होंने मुनि महाराजका हाल सुनाया । सुनकर व्यापारीने कहा:- " मैं इनका मूल्य नहीं लूँगा । तुम ले जाओ और मुनि महाराजका इलाज करो । वे दोनों चीजें लेकर रवाना हुए। मुनि महाराजकी दशाका विचार करने से वृद्धको वैराग्य हो गया । उसने घर-बार त्याग कर दीक्षा ले ली ।
- जीवानंदको जब गोशीर्षचंदन और रत्नकंबल मिले तब वह बहुत प्रसन्न हुआ | छहों मित्र मिलकर मुनि महाराजके पास गये । मुनि महाराज नगरसे दूर एक वटवृक्षके नीचे कायोत्सर्ग ध्यान में निमग्न थे । तीनों बैठ गये । मुनि महाराजने जब ध्यान :
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