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जैन-रत्न wwmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm
नवाँ भव-वहाँसे च्यवकर धनसेठका जीव जम्बूद्वीपके विदेह-क्षेत्रमें क्षितिप्रतिष्ठितनगरमें सुविधि वैद्यके घर जीवानंद नामक पुत्र हुआ । उसी समय नगरमें चार लड़के और भी उत्पन्न हुए । उनके नाम क्रमशः महीधर, सुबुद्धि, पूर्णभद्र और गुणाकर थे। श्रीमतीका जीव भी देवलोकसे च्यवकर उसी नगरमें ईश्वरदत्त सेठका केशव नामक पुत्र हुआ। ये छाहों अभिन्न हृदय मित्र थे । जीवानंद अपने पिताकी भाँति ही बहुत अच्छा वैद्य हुआ। ___एक बार छहों मित्र वैद्य जीवानंदके घर बैठे थे । अचानक ही एक मुनि महाराज वहाँ आ गये । तपसे उनका शरीर सूख गया था। कुसमय और अपथ्यकर भोजन करनेसे उन्हें कृमिकुष्ट व्याधि हो गई थी। सारा शरीर कृमिकुष्टसे व्याप्त हो गया था। तो भी उन महात्माने कभी किसीसे औषधकी याचना नहीं की थी।
गोमूत्रिका विधानसे मुनि महाराजका वहाँ आगमन देखकर उन्होंने उन्हें नमस्कार किया। उनके चले जाने पर महीधरने जीवानंदसे कहा:-" तुम्हें चिकित्साका अच्छा ज्ञान है तो भी तुम वेश्याकी भाँति पैसेके लोभी हो । मगर
१-साधु गोचरी जाते हैं तब उनके लिए जमीनपर पड़े हुए गोमूत्रकी भाँति भिक्षार्थ जानेकी शास्त्राज्ञा है । अर्थात् साधुओंको सिलसिलेवार घरोंमें गोचरी नहीं जाना चाहिए । एक घरमें जाकर फिर उसके सामनेवाले घरमें जाना चाहिए, कम भी छोड़के जाना चाहिए । इससे कोई साधुओंके लिए खास तरहसे किसी प्रकारकी तैयारी न कर सके। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com