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जैन-रत्न
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त्यागके उपदेशका कारण पूछा । स्वयंबुद्धने कहा कि, मैंने एक ज्ञानी मुनिक द्वारा मालूम किया है कि, आपकी आयु केवल एक महीनेहीकी बाकी रह गई है। इसीलिए आपसे शीघ्र ही धर्म-कार्यमें प्रवृत्त होनेका अनुरोध करता हूँ। ____यह सुनकर महाबलने उसी समय, अपने पुत्रको बुलाकर राज्यासनपर बिठा दिया और अपने समस्त कुटुंब परिवार, स्वजन संबंधी, नौकर, रैयत, छोटे बड़े सबसे क्षमा माँगकर मोक्षकी कारण दीक्षा ग्रहण की। फिर उसने चतुर्विध आहारका त्यागकर, शुद्ध आत्मचिन्तवनमें-समाधिमें दिन बिताये और क्षुधा पिपासा आदि परिसह सह, दुर्द्धर तपकर, शरीरका त्याग किया। ___ पाँचवाँ भव-धनसेठका जीव महाबलका शरीर छोड़कर श्रीप्रभनामके देवलोकमें ललितांग नामका देव हुआ । अनेक प्रकारके सुखोपभोगोंमें समय बिताया और आयु समाप्त होने पर देव देहका त्याग किया।
छठा भव --धनसेठका जीव वहाँसे च्यवकर जम्बद्वीपके सागर समीपस्थ पूर्व विदेहमें, सीता नामकी महानदीके उत्तर तटपर, पुष्कलावती नामक प्रदेशके लोहार्गल नगरके राजा सुवर्णजपके घर, उसकी लक्ष्मी नामकी रानीकी कूखसे जन्मा । उसका नाम वज्रजंघ रक्खा गया । उसका व्याह वज्रसेन राजाकी गुणवती स्त्रीकी कूखसे जन्मी हुई श्रीमती नामकी कन्याके साथ हुआ । वज्रजंघ जब युवा हुआ तब उसके पिता उसको राज्य-गद्दी सौंपकर साधु हो गये ।
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