________________
८१०
तिसु होमाणे- संजलणमाण-माया-लोभेसु होज्जा,
दो होमाणे- संजलणमाया-लोभेसु होज्जा, एगम्मि होमाणे एगम्मि संजलणे लोभे होज्जा। प. नियंठे णं भंते! किं सकसायी होज्जा, अकसायी होज्जा ? उ. गोयमा ! नो सकसायी होज्जा, अकसायी होज्जा ।
प. जइ अकसायी होज्जा, किं उबसंतकसायी होज्जा, वीणकसायी होज्जा ?
उ. गोयमा ! उवसंतकसायी वा होज्जा, खीणकसायी वा होज्जा |
सिनाए वि एवं चेब,
णवरं-नो उवसंतकसायी होज्जा, खीणकसायी होज्जा ।
१९. लेस्सादारं
प. पुलाए णं भंते! किं सलेस्से होज्जा, अलेस्से होज्जा ?
उ. गोयमा ! सलेस्से होज्जा, नो अलेस्से होज्जा ।
प. जइ सलेस्से होज्जा, से णं भंते ! कइसु लेसासु होज्जा ?
उ. गोयमा ! तिसु विसुद्धलेसासु होज्जा, तं जहा
१. उसाए, २. पउमलेसाए, ३. सुक्कलेसाए। बउसे पडिसेवणाकुसीले वि एवं चेव ।
प. कसायकुसीले णं भंते! कि सलेस्से होज्जा अलेस्से होज्जा ?
उ. गोयमा ! सलेस्से होज्जा, नो अलेस्से होज्जा ।
प. जइसलेस्से होज्जा, से णं भंते ! कइसु लेसासु होज्जा ?
उ. गोयमा ! छसु लेसासु होज्जा, तं जहा
१. कण्हलेसाए जाव ६. सुक्कलेसाए।
प. णियंठे णं भंते! किं सलेस्से होज्जा, अलेस्से होज्जा ?
उ. गोयमा ! सलेस्से होज्जा, नो अलेस्से होज्जा ।
प. जइसलेस्से होज्जा, से णं भंते ! कइसु लेसासु होज्जा ? उ. गोयमा ! एक्काए सुक्कलेसाए होज्जा ।
प. सिणाए णं भते कि सलेस्से होज्जा, अलेस्से होज्जा ?
उ. गोयमा ! सलेस्से वा होज्जा, अलेस्से वा होज्जा ।
प. जइ सलेस्से होज्जा से णं भंते! कइसु लेसासु होज्जा ? उ. गोयमा ! एगाए परमसुक्कलेसाए होज्जा । २०. परिणाम दारं
प. पुलाए णं भंते! किं वड्ढमाणपरिणामे होज्जा,
हायमाणपरिणामे होज्जा, अवट्ठियपरिणामे होज्जा ? उ. गोयमा ! बड्ढमाणपरिणामे या होज्जा, हायमाणपरिणामे वा होज्जा, अवट्ठियपरिणामे वा होज्जा । एवं जाय कसायकुसीले ।
पणियंठे णं भंते ! किं वड्ढमाणपरिणामे होज्जा जाव अवट्ठियपरिणामे होज्जा ?
दो हो तो -संज्वलन माया और लोभ होते हैं। एक हो तो -संज्वलन लोभ होता है।
प्र. भन्ते निर्ग्रन्य क्या सकषायी होता है या अकषायी होता है? उ. गौतम सकषायी नहीं होता है, अकषायी होता है।
प्र. यदि अकषायी होता है तो क्या उपशान्तकषायी होता है या क्षीणकषायी होता है ?
"
उ. गौतम । उपशान्तकषायी भी होता है. क्षीण कषायी भी होता है।
प्र.
उ.
प्र.
उ.
१९. लेश्या-द्वार
उ.
द्रव्यानुयोग - ( २ )
तीन हो तो - १. संज्वलन मान, २. माया और ३. लोभ होते हैं।
प्र.
उ.
प्र.
उ.
बकुश प्रतिसेवनाकुशील का भी कथन इसी प्रकार जानना चाहिए।
प्र. भन्ते ! कषायकुशील क्या सलेश्य होता है या अलेश्य होता है ?
प्र.
उ.
प्र.
उ.
स्नातक का कथन भी इसी प्रकार है,
विशेष - वह उपशान्तकषायी नहीं होता है, क्षीणकषायी होता है।
प्र.
उ.
२०.
भन्ते ! पुलाक क्या सलेश्य होता है या अलेश्य होता है ?
गौतम ! सलेश्य होता है, अलेश्य नहीं होता है।
भन्ते ! यदि सलेश्य होता है तो कितनी लेश्यायें होती हैं ?
गौतम ! तीन विशुद्ध लेश्यायें होती हैं, यथा
१. तेजोलेश्या, २. पद्मलेश्या ३. शुक्ललेश्या ।
1
गौतम! सलेश्य होता है, अलेश्य नहीं होता है।
भन्ते ! यदि वह सलेश्य होता है तो कितनी लेश्यायें होती हैं ?
गौतम ! छ लेश्यायें होती हैं, यथा
१. कृष्णलेश्या यावत् ६. शुक्ललेश्या ।
भन्ते ! निर्ग्रन्थ क्या सलेश्य होता है या अलेश्य होता है ?
गौतम! सलेश्य होता है, अलेश्य नहीं होता है।
भन्ते ! यदि वह सलेश्य होता है तो कितनी लेश्यायें होती हैं ?
गौतम ! एक शुक्ललेश्या होती है।
भन्ते ! स्नातक क्या सलेश्य होता है या अलेश्य होता है ?
गौतम! सलेश्य भी होता है, अलेश्य भी होता है।
भन्ते ! यदि वह सलेश्य होता है तो कितनी लेश्यायें होती हैं ?
गौतम ! एक परम शुक्ललेश्या होती है।
परिणाम द्वार
प्र. भन्ते ! पुलाक क्या वर्धमान परिणाम वाला होता है, हायमान परिणाम वाला होता है या अवस्थित परिणाम वाला होता है ?
उ. गौतम ! वर्धमान परिणाम वाला भी होता है, हायमान परिणाम वाला भी होता है तथा अवस्थित परिणाम वाला भी होता है। इसी प्रकार कषाय कुशील पर्यन्त जानना चाहिए।
प्र. भन्ते निर्ग्रन्थ क्या वर्धमान परिणाम वाला होता है यावत् अवस्थित परिणाम वाला होता है ?