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संयत अध्ययन
४. बउसस्स उक्कोसगा चरित्तपज्जवा अणंतगुणा, ५. पडिसेवणाकुसीलस्स उक्कोसगा चरित्तपज्जवा
अणंतगुणा। ६. कसायकुसीलस्स उक्कोसगा चरित्तपज्जवा
अणंतगुणा, ७. णियंठस्स सिणायस्स य एएसि णं
अजहन्नमणुक्कोसगा चरित्तपज्जवा दोण्ह वि तुल्ला
अणंतगुणा। १६. जोग-दारंप. पुलाए णं भंते ! किं सजोगी होज्जा, अजोगी होज्जा? उ. गोयमा ! सजोगी होज्जा,नो अजोगी होज्जा। प. जइ सजोगी होज्जा, किं मणजोगी होज्जा, वइजोगी
होज्जा, कायजोगी होज्जा? उ. गोयमा ! मणजोगी वा होज्जा, वइजोगी वा होज्जा,
कायजोगी वा होज्जा।
एवं जाव णियंठे। प. सिणाएणं भंते ! किं सजोगी होज्जा, अजोगी होज्जा? उ. गोयमा ! सजोगी वा होज्जा, अजोगी वा होज्जा। प. जइ सजोगी होज्जा, किं मणजोगी होज्जा, वइजोगी
होज्जा, कायजोगी होज्जा? उ. गोयमा ! तिन्नि वि होज्जा। १७. उवओग-दारंप. पुलाए णं भंते! किं सागारोवउत्ते होज्जा, अणागारोवउत्ते
होज्जा? उ. गोयमा ! सागारोवउत्ते वा होज्जा, अणागारोवउत्ते वा
४. (उससे) बकुश के उत्कृष्ट चारित्र पर्यव अनन्तगुणा हैं। ५. (उससे) प्रतिसेवनाकुशील के उत्कृष्ट चारित्र पर्यव
अनन्तगुणा हैं। ६. (उससे) कषायकुशील के उत्कृष्ट चारित्र पर्यव
अनन्तगुणा हैं। ७. (उससे) निर्ग्रन्थ और स्नातक इन दोनों के अजघन्य
अनुत्कृष्ट चारित्र पर्यव परस्पर तुल्य हैं और
अनन्तगुणा हैं। १६. योग-द्वारप्र. भन्ते ! पुलाक क्या सयोगी है या अयोगी है ? उ. गौतम ! सयोगी है, अयोगी नहीं है। प्र. यदि सयोगी है तो क्या मन योगी है, वचन योगी है या काय
योगी है? उ. गौतम ! मन योगी भी है, वचन योगी भी है और काय योगी
भी है।
इसी प्रकार निर्ग्रन्थ पर्यन्त जानना चाहिए। प्र. भन्ते ! स्नातक क्या सयोगी है या अयोगी है? उ. गौतम ! सयोगी भी है और अयोगी भी है। प्र. यदि सयोगी है तो क्या मन योगी है, वचन योगी है या काय
योगी है? उ. गौतम ! वह तीनों का योग वाला होता है। १७. उपयोग-द्वारप्र. भन्ते ! पुलाक क्या साकारोपयुक्त है या अनाकारोपयुक्त है ?
उ. गौतम ! साकारोपयुक्त भी है और अनाकारोपयुक्त भी है।
होज्जा,
एवं जाव सिणाए। १८. कसाय-दारंप. पुलाएणं भंते ! किं सकसायी होज्जा,अकसायी होज्जा? उ. गोयमा ! सकसायी होज्जा, नो अकसायी होज्जा। प. जइ सकसायी होज्जा, से णं भंते ! कइसु कसाएसु
होज्जा? उ. गोयमा ! चउसु संजलण कोह-माण-माया-लोभेसु होज्जा।
बउसे पडिसेवणाकुसीले विएवं चेव।
इसी प्रकार स्नातक पर्यन्त जानना चाहिए। १८. कषाय-द्वारप्र. भन्ते ! पुलाक क्या सकषायी है या अकषायी है? उ. गौतम ! सकषायी है, अकषायी नहीं है। प्र. भन्ते ! यदि वह सकषायी है तो उसके कितने कषाय हैं ?
उ. गौतम ! क्रोध, मान, माया, लोभ चारों संज्वलन कषाय है।
बकुश और प्रतिसेवनाकुशील के भी इसी प्रकार (चारों
कषाय) जानना चाहिए। प्र. भन्ते ! कषाय कुशील क्या सकषायी है या अकषायी है?
प. कसायकुसीले णं भंते ! किं सकसायी होज्जा, अकसायी
होज्जा? उ. गोयमा ! सकसायी होज्जा, नो अकसायी होज्जा। प. जइ सकसायी होज्जा, से णं भंते ! कइसु कसाएसु
होज्जा? उ. गोयमा ! चउसुवा, तिसुवा, दोसुवा, एगम्मि वा होज्जा,
चउसु होमाणे-संजलणकोह-माण-माया-लोभेसु होज्जा,
उ. गौतम ! सकषायी होता है, अकषायी नहीं होता है। प्र. भन्ते ! वह यदि सकषायी है तो उसके कितने कषाय हैं ?
उ. गौतम ! चार, तीन, दो या एक कषाय होते हैं।
चार हों तो-१.संज्वलन क्रोध,२. मान, ३. माया और लोभ होते हैं।