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संयत अध्ययन
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१४. संजम-दारंप. पुलागस्स णं भंते ! केवइया संजमठाणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! असंखेज्जा संजमठाणा पण्णत्ता।
एवं जाव कसायकुसीलस्स वि, प. नियंठस्स णं भंते ! केवइया संजमठाणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! एगे अजहन्नमणुक्कोसए संजमठाणे पण्णत्ते।
एवं सिणायस्स वि,
अप्पबहुत्तंप. एएसि णं भंते ! पुलाग, बउस, पडिसेवणा-कुसीलस्स,
कसायकुसील, णियंठ, सिणायाणं संजमठाणाणं कयरे
कयरेहितो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा ! सव्वत्थोवे णियंठस्स सिणायस्स य एगे
अजहन्नमणुक्कोसए संजमठाणे, पुलागस्स संजमठाणा असंखेज्जगुणा, बउसस्स संजमठाणा असंखेज्जगुणा, पडिसेवणाकुसीलस्स संजमठाणा असंखेज्जगुणा, कसायकुसीलस्स संजमठाणा असंखेज्जगुणा।
निकास-दारंप. पुलागस्स णं भंते ! केवइया चरित्तपज्जवा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! अणंता चरित्तपज्जवा पण्णत्ता।
एवं जाव सिणायस्स,
अप्पबहुत्तंप. पुलाए णं भंते ! पुलागस्स सट्ठाण-सन्निगासेणं
चरित्तपज्जवेहिं किं हीणे, तुल्ले, अब्भहिए? उ. गोयमा ! सिय हीणे, सिय तुल्ले, सिय अब्भहिए।
जइ हीणे१. अणंतभागहीणे वा, २. असंखेज्जइभागहीणे वा, ३. संखेज्जइभागहीणे वा,४. संखेज्जगुणहीणे वा, ५. असंखेज्जगुणहीणे वा, ६. अणंतगुणहीणे वा। अह अब्भहिए-१. अणंतभागमभहिए वा, २. असंखेज्जभागमब्भहिए वा, ३. संखेज्जभागमभहिए वा, ४. संखेज्जगुणमब्भहिए वा, ५. असंखेज्जगुण
ममहिए वा, ६.अनंतगुणमब्भहिए वा। प. पुलाए णं भंते ! बउसस्स परट्ठाण-सन्निगासेणं
चरित्तपज्जवेहिं किं हीणे, तुल्ले, अब्भहिए? उ. गोयमा ! हीणे, नो तुल्ले, नो अब्भहिए, अणंतगुणहीणे।
१४. संयम-द्वारप्र. भन्ते ! पुलाक के कितने संयम स्थान कहे गए हैं ? उ. गौतम ! असंख्यात संयम स्थान कहे गए हैं।
इसी प्रकार कषायकुशील पर्यन्त जानना चाहिए। प्र. भन्ते ! निर्ग्रन्थ के कितने संयम स्थान कहे गए हैं ? उ. गौतम ! अजघन्य अनुत्कृष्ट एक संयम स्थान कहा गया है।
स्नातक का कथन भी इसी प्रकार है।
अल्पबहुत्वप्र. भन्ते ! पुलाक, बकुश, प्रतिसेवनाकुशील, कषाय कुशील,
निर्ग्रन्थ और स्नातक इनके संयम स्थानों में कौन किनसे अल्प
यावत् विशेषाधिक हैं? उ. गौतम ! सबसे अल्प निर्ग्रन्थ और स्नातक का अजघन्य
अनुत्कृष्ट एक संयम स्थान है। (उससे) पुलाक के संयम स्थान असंख्यातगुणे हैं। (उससे) बकुश के संयम स्थान असंख्यातगुणे हैं। (उससे) प्रतिसेवनाकुशील के संयम स्थान असंख्यातगुणे हैं।
(उससे) कषायकुशील के संयम स्थान असंख्यातगुणे हैं। १५. सन्निकर्ष-द्वार
प्र. भन्ते ! पुलाक के कितने चारित्र पर्यव कहे गए हैं ? उ. गौतम ! अनन्त चारित्र पर्यव कहे गए हैं?
इसी प्रकार स्नातक पर्यन्त जानना चाहिए।
अल्पबहुत्वप्र. भन्ते ! पुलाक स्वस्थान की तुलना में चारित्र पर्यवों से क्या हीन
है, तुल्य है या अधिक है? उ. गौतम ! कभी हीन है, कभी तुल्य है, कभी अधिक है।
यदि हीन हो तो१. अनन्त भाग हीन है, २. असंख्यातभाग हीन है, ३. संख्यात भाग हीन है, ४. संख्यात गुण हीन है, ५. असंख्यात गुण हीन है, ६. अनन्त गुण हीन है। यदि अधिक हो तो-१.अनन्त भाग अधिक है, २.असंख्यात भाग अधिक है, ३. संख्यात भाग अधिक है, ४.संख्यात गुण अधिक है, ५. असंख्यात गुण अधिक है, ६. अनन्त गुण
अधिक है। प्र. भन्ते ! पुलाक बकुश के पर स्थान की तुलना में चारित्र पर्यवों
से क्या हीन है, तुल्य है या अधिक है? उ. गौतम ! हीन है, तुल्य नहीं है और अधिक भी नहीं है किन्तु
अनन्तगुण हीन है। इसी प्रकार प्रतिसेवनाकुशील की तुलना का कथन करना चाहिए। कषाय कुशील से (उपरोक्त अनन्त भाग से लेकर अनन्त गुण तक) छह स्थान पतित है। निर्ग्रन्थ और स्नातक के साथ तुलना बकुश की तुलना के समान है।
एवं पडिसेवणाकुसीलेण समं वि
कसायकुसीलेण समं छट्ठाणवडिए,
नियंठस्स सिणायस्सय जहा बउसस्स।