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संयत अध्ययन
२. सुसमा पलिभागे होज्जा, ३. सुसम-दुस्समा पलिभागे होज्जा,
४. दुस्सम-सुसमा पलिभागे होज्जा, उ. गोयमा ! जम्मणं-संतिभावं पडुच्च
१. नो सुसम-सुसमा पलिभागे होज्जा, २. नो सुसमा पलिभागे होज्जा, ३. नो सुसम-दुस्समा पलिभागे होज्जा, ४. दुस्सम-सुसमा पलिभागे होज्जा, साहरणं पडुच्च-अन्नयरे पलिभागे होज्जा,
पडिसेवणाकुसीले कसायकुसीले वि एवं चेव।
नियंठो, सिणायो यजहा पुलाए,
णवरं-एएसि इमं अब्भहियं भाणियव्वं-साहरणं पडुच्च
अण्णयरे समाकाले होज्जा। १३. गइ-दारंप. पुलाएणं भंते ! कालगए समाणे कं गइं गच्छइ?
उ. गोयमा ! देवगईं गच्छइ, प. देवगई गच्छमाणे किं भवणवासीसु उववज्जेज्जा,
वाणमंतरेसु उववज्जेज्जा, जोइसिएसु उववज्जेज्जा,
वैमाणिएसु उववज्जेज्जा? उ. गोयमा ! नो भवणवासीसु,
नो वाणमंतरेसु, नो जोइसेसु, वेमाणिएसु उववज्जेज्जा। वेमाणिएसु उववज्जमाणेजहण्णेणं सोहम्मे कप्पे, उक्कोसेणं सहस्सारे कप्पे उववज्जेज्जा। बउसे, पडिसेवणाकुसीले वि एवं चेव, णवरं-उक्कोसेणं अच्चुए कप्पे उववज्जेज्जा, कसायकुसीले वि एवं चेव, णवरं-उक्कोसेणं अणुत्तर-विमाणेसु उववज्जेज्जा। णियंठे वि एवं चेव, णवरं-अजहण्णमणुक्कोसेणं अणुत्तर-विमाणेसु
उववज्जेज्जा। प. सिणाएणं भंते ! कालगए समाणे कं गईं गच्छइ?
। ८०५ २. अपरिवर्तनशील सुसमा काल में होता है, ३. अपरिवर्तनशील सुसम-दुसमा काल में होता है,
४. अपरिवर्तनशील दुसम-सुसमा काल में होता है? उ. गौतम ! जन्म और सद्भाव की अपेक्षा से
१. अपरिवर्तनशील सुसम-सुसमा काल में नहीं होता है, २. अपरिवर्तनशील सुसमा काल में नहीं होता है, ३. अपरिवर्तनशील सुसमदुसमा काल में नहीं होता है, ४. अपरिवर्तनशील दुसम-सुसमा काल में होता है। साहरण की अपेक्षा से-अपरिवर्तनशील किसी भी काल में हो सकता है। प्रतिसेवनाकुशील और कषायकुशील का कथन भी इसी प्रकार है। निर्ग्रन्थ और स्नातक का कथन पुलाक के समान जानना चाहिए। विशेष-इसमें साहरण की अपेक्षा से किसी भी काल में होता
है, ऐसा अधिक कहना चाहिए। १३. गति-द्वारप्र. भन्ते ! पुलाक काल धर्म को प्राप्त होने पर किस गति को प्राप्त
होता है? उ. गौतम ! देव गति को प्राप्त होता है। प्र. देव गति में उत्पन्न होता हुआ क्या भवनपतियों में उत्पन्न होता
है, वाणव्यन्तरों में उत्पन्न होता है, ज्योतिषियों में उत्पन्न होता
है या वैमानिकों में उत्पन्न होता है? उ. गौतम ! न भवनपतियों में उत्पन्न होता है?
न वाणव्यन्तरों में उत्पन्न होता है, न ज्योतिषियों में उत्पन्न होता है, किन्तु वैमानिकों में उत्पन्न होता है। वैमानिकों में उत्पन्न होता हुआजघन्य-सौधर्म कल्प में उत्पन्न होता है, उत्कृष्ट-सहस्रार कल्प में उत्पन्न होता है। बकुश और प्रतिसेवना कुशील का कथन भी इसी प्रकार है, विशेष-वे उत्कृष्ट अच्युत कल्प में उत्पन्न होते हैं। कषायकुशील का कथन भी इसी प्रकार है, विशेष-वह उत्कृष्ट अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होता है। निर्ग्रन्थ का कथन भी इसी प्रकार है, विशेष-वह अजघन्य अनुत्कृष्ट अर्थात् केवल पांच अनुत्तर
विमानों में ही उत्पन्न होता है। प्र. भन्ते ! स्नातक काल धर्म प्राप्त होने पर किस गति को प्राप्त
होता है? उ. गौतम ! सिद्ध गति को प्राप्त होता है। प्र. भन्ते ! पुलाक वैमानिक देवताओं में उत्पन्न होता हुआ क्या
इन्द्र रूप में उत्पन्न होता है, सामानिक देव रूप में उत्पन्न होता है,
उ. गोयमा ! सिद्धिगईं गच्छइ। प. पुलाएणं भंते ! वेमाणिएसु उववज्जमाणे किं
इंदत्ताए उववज्जेज्जा, सामाणियत्ताए उववज्जेज्जा,