________________
८०८
प. बउसे णं भंते ! पुलागस्स परट्ठाण-सन्निगासेणं
चरित्तपज्जवेहिं किं हीणे,तुल्ले, अब्भहिए? उ. गोयमा ! नो हीणे, नो तुल्ले, अब्भहिए,
अणंतगुणमब्महिए। प. बउसे णं भंते ! बउसस्स सट्ठाण-सन्निगासेणं
चरित्तपज्जवेहि किं हीणे,तुल्ले, अब्भहिए? उ. गोयमा ! सिय हीणे, सिय तुल्ले, सिय अब्भहिए,
छट्ठाणवडिए। प. बउसे णं भंते ! पडिसेवणाकुसीलस्स परट्ठाण___सन्निगासेणं चरित्तपज्जवेहि किं हीणे,तुल्ले, अब्भहिए? उ. गोयमा ! सिय हीणे जाव छट्ठाणवडिए।
एवं कसायकुसीलस्स वि। प. बउसे णं भंते ! नियंठस्स परट्ठाण-सन्निगासेणं
चरित्तपज्जवेहिं किं हीणे,तुल्ले, अब्महिए? उ. गोयमा ! हीणे, नो तुल्ले, नो अब्भहिए, अणंतगुणहीणे।
द्रव्यानुयोग-(२) प्र. भन्ते ! बकुश पुलाक के पर-स्थान की तुलना में चारित्र पर्यवों
से क्या हीन है, तुल्य है या अधिक है? उ. गौतम ! न हीन है, न तुल्य है किन्तु अधिक है और अनन्त
गुण अधिक है। प्र. भन्ते ! बकुश-बकुश के स्वस्थान की तुलना में चारित्र पर्यवों
से क्या हीन है, तुल्य है या अधिक है? उ. गौतम ! कभी हीन है, कभी तुल्य है, कभी अधिक है, अर्थात्
छः स्थान पतित है। प्र. भन्ते ! बकुश, प्रतिसेवना-कुशील के पर-स्थान की तुलना में
चारित्र पर्यवों से क्या हीन है, तुल्य है या अधिक है? उ. गौतम ! कभी हीन है यावत् छः स्थान पतित है। .
बकुश कषाय कुशील की तुलना भी इसी प्रकार है। प्र. भन्ते ! बकुश निर्ग्रन्थ के परस्थान की तुलना में चारित्र पर्यवों
से क्या हीन है, तुल्य है या अधिक है? उ. गौतम ! हीन है, तुल्य नहीं है और अधिक नहीं है किन्तु
अनन्तगुण हीन है। बकुश स्नातक की तुलना भी इसी प्रकार है। प्रतिसेवना कुशील और कषायकुशील भी छहों निर्ग्रन्थों के साथ तुलना में बकुश के समान है। विशेष-कषायकुशील पुलाक के साथ भी छः स्थान पतित
एवं सिणायस्स वि। पडिसेवणाकुसीलस्स कसायकुसीलस्स य एस चेव बउस वत्तव्यया, णवर-कसायकुसीलस्स पुलाएण वि समं छट्ठाणवडिए।
प. णियंठे णं भंते ! पुलागस्स परट्ठाण-सन्निगासेणं
चरित्तपज्जवेहि किं हीणे, तुल्ले, अब्महिए? उ. गोयमा ! नो हीणे, नो तुल्ले, अब्महिए,
अणंतगुणमब्भहिए। एवं जाव कसायकुसीलस्स।
प. नियंठे णं भंते ! नियंठस्स सट्ठाण-सन्निगासेणं
चरित्तपज्जवेहिं किं हीणे,तुल्ले अब्भहिए? उ. गोयमा ! नो हीणे,तुल्ले, नो अब्भहिए।
एवं सिणायस्स वि। जहा णियंठस्स वत्तव्वया तहा सिणायस्स वि सव्या वत्तव्यया।
अप्पबहुत्तंप. एएसि णं भंते ! पुलाग, बउस, पडिसेवणाकुसील,
कसायकुसील, णियंठ, सिणायाणं जहन्नुक्कोसगाणं चरित्तपज्जवाणं कयरे कयरेहितो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा ! १. पुलागस्स कसायकुसीलस्स य एएसि णं
जहन्नगा चरित्तपज्जवा तुल्ला सव्वत्थोवा, २. पुलागस्स उक्कोसगा चरित्तपज्जवा अणंतगुणा, ३. बउसस्स पडिसेवणाकुसीलस्स य एएसि णं जहन्नगा
चरित्तपज्जवा दोण्ह वितुल्ला अणंतगुणा,
प्र. भन्ते ! निर्ग्रन्थ पुलाक के परस्थान की तुलना में चारित्र पर्यवों
से क्या हीन है, तुल्य है या अधिक है? उ. गौतम ! न हीन है, न तुल्य है किन्तु अधिक है और अनन्त
गुण अधिक है। इसी प्रकार निर्ग्रन्थ की कषाय कुशील पर्यन्त तुलना जाननी
चाहिए। प्र. भन्ते ! निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थ के स्वस्थान की तुलना में चारित्र पर्यवों
से क्या हीन है, तुल्य है या अधिक है? उ. गौतम ! हीन भी नहीं है और अधिक भी नहीं है किन्तु तुल्य है।
इसी प्रकार निर्ग्रन्थ की स्नातक के साथ तुलना करनी चाहिए। जिस प्रकार निर्ग्रन्थ की वक्तव्यता है उसी प्रकार छहों के साथ स्नातक की भी संपूर्ण वक्तव्यता जाननी चाहिए।
अल्पबहुत्यप्र. भन्ते ! पुलाक, बकुश, प्रतिसेवनाकुशील, कषायकुशील,
निर्ग्रन्थ और स्नातक इनके जघन्य, उत्कृष्ट चारित्र पर्यवों में से कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक है?
उ. गौतम ! १. पुलाक और कषाय कुशील इन दोनों के जघन्य
चारित्र पर्यव परस्पर तुल्य और सबसे अल्प हैं। २. (उससे) पुलाक के उत्कृष्ट चारित्र पर्यव अनन्तगुणा हैं। ३. (उससे) बकुश और प्रतिसेवनाकुशील-इन दोनों के
जघन्य चारित्र पर्यव परस्पर तुल्य हैं और अनन्तगुणा हैं।