Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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अर्थकारणतावादः
१७
कर्तृत्वानुषङ्गो महेश्वरवत् । यथैव हीश्वयः कार्यग्रामेणानुपक्रियमाणोप्यविशेषेण तं करोति तथा कुम्भकारादिरपि कुर्यात् । न हि सोपि तेनोपक्रियते येन 'उपकारकमेव कुर्यान्नान्यम्' इति नियमः स्यात् । शक्तिप्रतिनियमात्तदविशेषेपि कश्चित्कस्यचित्कत्ते त्यभ्युपगमो ग्राहकत्वपक्षेपि समानः ।
ननु यद्यर्थाभावेपि ज्ञानोत्पत्तिः कुतो न नोलाद्यर्थरहिते प्रदेशे तद्भवति ? भवत्यैव नयनमनसोः प्रणिधाने । कथं न नीलाद्यथं ग्रहरणम् ? तत्र तदभावात् । कथं 'तदुत्पन्नम्' इत्यवगम: ? न हि
उपकृत न होकर भी अविशेष रूपसे उसको करता है । उसीप्रकार कुंभकार आदि सभी प्राणी भी अशेष कार्यको कर सकेंगे ? ( क्योंकि एककी शक्ति अन्यमें हो सकती है ऐसा आपने मान लिया है ) कुंभकार भी उस कार्य समूहद्वारा उपकृत तो होता ही नहीं, जिससे कि वह अपने उपकारकको ही करे, अन्यको न करे इसतरह का नियम बन सके । यदि कोई कहे कि कुंभकार आदि प्राणी अल्प-नियत शक्ति वाले होते हैं अतः ईश्वरके कार्य द्वारा उपकृत नहीं होते हुए भी किसी किसी कार्यको ही कर सकते हैं, सब कार्यों को नहीं ? सो यही बात ज्ञानके ग्राहक पक्ष में घटित कर लेनी चाहिये, अर्थात ज्ञान पदार्थसे उत्पन्न नहीं होकर भी अपने शक्ति के अनुसार योग्य पदार्थका ग्राहक होता है ।
शंका: - यदि पदार्थ के प्रभाव में भी ज्ञान होता है तो नील आदि पदार्थ जहांपर नहीं हैं ऐसे स्थान पर भी नील आदिकी प्रतीति होनी चाहिये ?
समाधानः- - होती है, नेत्र तथा मनसे जो ज्ञान होता है उस स्थान में पदार्थ रहते ही नहीं, तुम कहो कि फिर वहां नोलादिका ग्रहण ( प्राप्ति ) भी होना चाहिये ? सो ऐसी बात नहीं है, वहाँ पदार्थ नहीं होनेसे ग्रहण नहीं होता । फिर शंका होती है कि पदार्थ नहीं होनेपर जो ज्ञान होता है तो "वह ज्ञान उत्पन्न हुआ" इसप्रकार कैसे जान सकेंगे ? जो ज्ञान विषयको नहीं जानता उसको 'है' ऐसा कहना युक्त नहीं अन्यथा सर्वत्र सर्वदा सभीको वह ज्ञान होवेगा ? सो यह शंका भी प्रसार है, सामने उपस्थित नील आदि पदार्थको ज्ञान ही ग्रहण करते हुए देखा जाता है । फिर शंका करते हैं कि जब ज्ञान वस्तु को ग्रहण करता है उस वक्त दूसरा ही ज्ञान रहता है ? सो यह शंका ठीक नहीं, क्या आप इस समय प्रकाश स्वरूप ज्ञान में भेद मानना चाहते हैं ? यदि मानेंगे तो दीपक में घट पट प्रादिको प्रकाशित करने की अपेक्षा भेद मानना
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