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* जैन तत्व प्रकाश
था । देह की अवगाहना १५ धनुष की और आयु दस हजार वर्ष की थी । हजार वर्ष तक गृहस्थावस्था में रहे । एक हजार वर्ष संयम पाला । एक हजार साधुओं के साथ मोक्ष पधारे ।
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(२२) श्री अरिष्टनेमिजी — फिर पाँच लाख वर्षों के पश्चात् सौरीपुर नगर के समुद्रविजय राजा की शिवादेवी नामक महारानी से बाईसवें तीर्थङ्कर श्री अरिष्टनेमि का जन्म हुआ । इनके शरीर का वर्ण नीलम के समान श्याम था । शङ्ख का लक्षण था । देह का मान १० धनुष का और आयुष्य एक हजार वर्ष का था । जिसमें से ३०० वर्ष गृहवास में रहे । ७०० वर्ष संयम पाला । ५३६ मुनियों के साथ निर्वाण प्राप्त किया ।
(२३) श्री पार्श्वनाथजी - श्री अरिष्टनेमि के पश्चात् ८४ हजार वर्ष बीत जाने पर, वाणारसी के अश्वसेन राजा की वामादेवी रानी से तेईसवें तीर्थङ्कर श्री पार्श्वनाथ का जन्म हुआ । इनके शरीर का वर्ण पन्ना के समान हरा था और सर्प का लक्षण था । देहमान नौ हाथ का और आयुष्य स वर्ष का था । ३० वर्ष गृहस्थावस्था में रहे और ७० वर्ष संयम का पालन किया । एक हजार मुनियों के साथ मुक्तिलाभ किया ।
(२४) श्री महावीर स्वामी -- तत्पश्चात् २५० वर्ष के बाद, क्षत्रियकुण्ड नगर के सिद्धार्थ राजा की त्रिशलादेवी रानी से चौबीसवें तीर्थङ्कर श्री. बर्द्धमान ( महावीर ) स्वामी का जन्म हुआ । इनके शरीर का वर्ण स्वर्ण के सदृश पीला था | सिंह का लक्षण था । देह की उँचाई सात हाथ की और आयु ७२ वर्ष की थी । ३० वर्ष गृहस्थी में रहे । ४२ वर्ष संयम पाला । जब चौथे चारे के ३ वर्ष और ८ || महीने शेष थे, तब अकेले ही मोक्ष पधारे ।
प्रथम तीर्थङ्कर श्री ऋषभदेव से लेकर अन्तिम तीर्थङ्कर श्रीमहावीर स्वामी तक का कुल समय ४२००० वर्ष कम एक कोड़ाकोड़ी सागरोपम से कुछ अधिक जानना चाहिए ।
एक तीर्थङ्कर के निर्वाण और अगले तीर्थङ्कर के जन्म के बीच का जो समय-परिमाण यहाँ बतलाया गया है, वह अन्तर शाश्वत है । भूतकाल