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* जैन-तत्त्व प्रकाश
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(१३) श्री विमलनाथजी - तदनन्तर ३० सागरोपम के पश्चात् कम्पिलपुर नगर में, कृतवर्म राजा की श्यामादेवी रानी से तेरहवें तीर्थङ्कर विमलनाथ का जन्म हुआ । इनके शरीर का वर्ण स्वर्ण के समान पीला और वाराह का लक्षण था । शरीर की उँचाई ६० धनुष की तथा आयु ६० लाख वर्ष की थी । ४५ लाख वर्ष गृहस्थाश्रम रहे और १५ लाख वर्ष संयम पाल कर ६०० मुनियों के साथ मोक्ष पधारे ।
(१४) श्री अनन्तनाथजी — फिर नौ सागरोपम के बाद, अयोध्या नगरी में, सिंहसेन राजा की सुयशा रानी से चौदहवें तीर्थङ्कर श्री अनन्तनाथ का जन्म हुआ । इनके शरीर का वर्ण स्वर्ण समान पीला था और सिकरे पक्षी का लक्षण था । शरीर की उँचाई ५० धनुष की और श्रायु ३० लाख वर्ष की थी । २२|| लाख वर्ष गृहवास में रहे और साढ़े सात लाख वर्ष तक संयम पाला । ७०० मुनियों के साथ निर्वाण को प्राप्त हुए ।
(१५) श्री धर्मनाथजी — फिर चार सागरोपम के बाद रत्नपुरी नगरी में, भानु राजा की सुव्रता रानी से पन्द्रहवें तीर्थङ्कर श्री धर्मनाथ का जन्म हुआ । इनके शरीर का वर्ण स्वर्ण के सदृश पीला था । वज्र का लक्षण था । देहमान ४५ धनुष का था । श्रायु १० लाख वर्ष की थी। नौ लाख वर्ष गृहवास में रहे और एक लाख वर्ष संयम का पालन किया । ८०० साधुओं के साथ सिद्धि प्राप्त की ।
(१६) श्री शांतिनाथजी - श्री धर्मनाथ के बाद पौन पल्य कम तीन सागर बीत जाने पर हस्तिनापुर के विश्वसेन राजा की अचला रानी से सोलहवें तीर्थङ्कर श्री शान्तिनाथजी का जन्म हुआ । इनके शरीर का वर्ण स्वर्ण के सरीखा पीला था मृग का चिह्न था । देहमान ४० धनुष और
युष्य एक लाख वर्ष का था । पचहत्तर हजार वर्ष गृहस्थावस्था में रहे और पच्चीस हजार वर्ष संयम का पालन करके ६०० मुनियों के साथ मोच को प्राप्त हुए ।
(१७) श्री कुन्थुनाथजी -- तत्पश्चात् आधा पल्पोपम बीत जाने पर गजपुर नगर के सुर राजा की श्रीदेवी रानी से सतरहवें तीर्थङ्कर श्री कुन्थु