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ॐ अरिहन्त
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(8) श्रीसुविधिनाथजी-तत्पश्चात् १० करोड़ सागरोपम के बाद, काकन्दी नगरी के सुग्रीव राजा की रामादेवी रानी से नववे तीर्थङ्कर श्री सुविधिनाथ का जन्म हुओं। इनके शरीर का वर्ण हीरा के समान श्वेत था
और लक्षणं मत्स्य का था । देहमान १०० धनुष का तथा आयुष्य दो लाख पूर्व का था । एक लाख पूर्व गृहवास में रहे और एक लाख पूर्व संयम पाला । अन्त में एक हजार साधुओं के साथ मुक्ति प्राप्त की। इनका दूसरा नाम 'श्री पुष्पदन्त' भी है।
(१०) श्री शीतलनाथजी-तदन्तर नौ करोड़ सागरोपम के बाद भद्दलपुर नगरी के दृढ़रथ राजा की नन्दादेवी रानी से श्री शीतलनाथ का जन्म हुआ। देह का वर्ण स्वर्ण के समान पीत और श्रीवत्स-स्वस्तिक का लक्षण था। देहमान ६० धनुष था और आयुष्य एक लाख पूर्ण का था । पौन लाख पूर्व गृहस्थी में रहे और पाच लाख पूर्व तक संयम का पालन करके एक हजार मुनियों के साथ मुक्ति को प्राप्त हुए ।
(११) श्री श्रेयांसनाथ-एक अरब छयासठ लाख, छब्बीस हजार वर्ष कम एक करोड़ सागरोपम के बाद सिंहपुरी नगरी में, विष्णु राजा की विष्णुदेवी रानी से ग्यारहवें तीर्थङ्कर श्री श्रेयांसनाथ का जन्म हुआ। इनके शरीर का वर्ण स्वर्ण के समान पीला और लक्षण गेंडा का था। देहमान ८० धनुष का और आयुष्य ८४ लाख पूर्व का था। जिसमें से ६३ लाख पूर्व गृहस्थावस्था में रहे । २१ लाख पूर्व संयम पाला। एक हजार मुनियों के साथ मुक्त हुए।
___ (१२) श्री वासुपूज्यस्वामी-फिर ६४ सागरोपम के बाद चम्पापुरी नगरी में, वासुपूज्य राजा की जयादेवी रानी से बारहवें तीर्थङ्कर श्री वासुपूज्य का जन्म हुआ। इनके शरीर का वर्ण माणिक जैसा लाल था। महिष (भैंसे ) का चिह्न था । देहमान ७० धनुष का और आयुष्य ७२ लाख वर्ष का था । अठारह लाख वर्ष गृहकास में रहे। ५४ लाख वर्ष तक संयम का पलिन किया। ६०० मुनियों के साथ मोच पधारे।