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पालन
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जैन-तत्त्व प्रकाश (५) श्री सुमतिनाथजी-तदनन्तर नौ लाख करोड़ सागरोपम व्यतीत होने पर, कंचनपुर नगर में, मेघरथ राजा की सुमंगला रानी से पाँचवें तीर्थङ्कर श्री सुमतिनाथजी का जन्म हुआ। इनके शरीर का वर्ण स्वर्ण के सदृश पीला और.लक्षण क्रौंच पक्षी का था। देहमान ३०० धनुष का,
आयुष्य ४० लाख पूर्व का था । ३६ लाख पूर्व तक गृहस्थावस्था में रहे । एक लाख पूर्व संयम का पालन करके एक हजार मुनियों के साथ निर्वाण को प्राप्त हुए।
(६) श्री पद्मप्रभजी-फिर ६० हजार करोड़ सागरोपम के पश्चात् कौशाम्बी नगरी में, श्रीधर राजा की सुसीमा रानी से छठे तीर्थङ्कर श्रीपद्मप्रभ का जन्म हुआ। इनके शरीर का वर्ण माणिक के समान लाल और चिह्न पन (कमल) का था। शरीर की उँचाई २५० धनुष की और आयु ३० लाख पूर्व की थी । २६ लाख पूर्व गृहस्थावस्था में रहे, एक लाख पूर्व तक संयम का पालन किया । अन्त में एक हजार मुनियों के साथ निर्वाण को प्राप्त हुए।
(७) श्री सुपार्श्वनाथजी-नौ हजार करोड़ सागरोपम के पश्चात् वाणारसी नगरी में, प्रतिष्ठ राजा की पृथ्वीदेवी रानी से सातवें तीर्थङ्कर श्री
सुपाश्वनाथ का जन्म हुआ। इनके शरीर का वर्ण स्वर्ण के समान पीला • और लक्षण स्वस्तिक का था। शरीर की उँचाई २०० धनुष की और आयु
२० लाख पूर्व की थी। १६ लाख पूर्व गृहस्थावस्था में रहे । एक लाख पूर्व संयम पाल कर एक हजार मुनियों के साथ सिद्धि प्राप्त की।
(८) श्री चन्द्रप्रभजी-श्री सुपार्श्वनाथ के अनन्तर ६०० करोड़ सागर के पश्चात् चन्द्रपुरी नगरी के महासेन राजा की लक्ष्मणादेवी रानी से आठवें तीर्थङ्कर श्री चन्द्रप्रभ का जन्म हुआ। इनके शरीर का वर्ण हीरा के समान श्वेत और लक्षण चन्द्रमा का था । शरीर की उँचाई १५० धनुष की
और आयु १० लाख पूर्व की थी। नौ लाख पूर्व तक गृहवास में व्यतीत करके, एक लाख पूर्व संयम का पालन करके, एक हजार साधुओं के साथ मुक्त हुए।