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एक भाग प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति बतलाई गई है। अंध नामक चौथे इन्द्रक में सत्यवादी जिनेन्द्र भगवान ने यही जघन्य स्थिति कही है और पन्द्रह सागर पूर्ण तथा एक सागर के पांच भागों में तीन भाग प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति बतलाई है। तमिस्र नामक पांचवें इन्द्रक में यही जघन्य स्थिति मानी जाती है और सत्रह सागर प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति बतलाई जाती है। इस प्रकार पांचवीं पृथिवी में सामान्य रूप से सत्रह सागर की मायु प्रसिद्ध है।
छठवीं पथिवी के हिम नामक प्रथम इन्द्रक में सत्रह सागर प्रमाण जघन्य स्थिति कही गई है और अठारह सागर पूर्ण तथा एक सागर के तीन भागों में दो भाग उत्कृष्ट स्थिति बतलाई गई है। बदल नामक दूसरे इन्द्रक विल में यही जघन्य स्थिति कही गई है और बीस सागर पूर्ण तथा एक सागर के तीन भागों में एक भाग प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति बतलाई गई है। मुनियों में श्रेष्ठ गणधरादि देवों ने लल्लक नामक तीसरे इन्द्रक में यही जघन्य स्थिति कही है तथा बाईस सागर प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति बतलाई है इस प्रकार छठवीं पृथिवी में सामान्य रूप से बाईस सागर प्रमाण पायु कही गई है। . सातवीं पथिवी में केवल एक अप्रतिष्ठान नाम का इन्द्रक है सो उसमें यही जघन्य स्थिति वत्तलाई गई है और जो उत्कष्ट स्थिति है वह तैतीस सागर प्रमाण है इस प्रकार सातवीं पृथिवी में सामान्य रूप से तैतीस सागर प्रमाण प्राय प्रसिद्ध है अब नारकियों के शरीर की ऊचाई का वर्णन किया जाता है--
पहली पथिवी के सीमन्तक नामक प्रथम प्रस्तार में नारकियों के शरीर की ऊंचाई तीन हाथ है। तरक नारक दूसरे प्रस्तार में एक धनूष एक हाथ तथा साढ़े आठ अंगुल है। रोरुक नामक तीसरे प्रस्तार में एक धनुष तीन हाय तथा सत्रह मंगुल है। भ्रान्त नामक चौथे प्रस्तार में दो धनुष दो हाथ और डेढ़ अंगुल है । उद्भ्रान्त नामक पांचवें प्रस्तार में तीन धनुष और दश अंगल है। संभ्रात नामक छठवें प्रस्तार में तीन धनुष दो हाथ और साढ़े अठारह अंगुल है। असंभ्रान्त नामक सातवें प्रस्तार में विशद ज्ञान के धारी प्राचार्यों ने नारकियों के शारीर की ऊंचाई चार धनुष, एक हाथ और तीन अंगुल बललाई है। भ्रान्ति रहित प्राचार्यों ने विभ्रान्त नामक पाठवें प्रस्तार में नारकियों के शरीर का उत्सेष चार धनुष तीन हाथ और साढ़े ग्यारह अंगल प्रमाण कहा है। त्रस्त नामक नौवें प्रस्तार में पांच धनुष एक हाथ और बीस अंगुल ऊंचाई कही गई है। जहां प्राणी भयभीत हो रहे हैं ऐसे त्रसित नामक दसवें प्रस्तार में नारकियों के शरीर की ऊंचाई चतुर आचार्यों ने छह धनुष और साढ़े चार अंगूल प्रमाण बतलाई है। वक्रान्त नामक ग्यारहवें प्रस्तार में श्रेष्ठ वक्ताओं ने नारकियों का शरीर छः धनुष दो हाथ और तेरह अंगुल प्रमाण कहा है । प्रवक्रान्त नामक बारहवें प्रस्तार में विद्वान प्राचार्यों ने नारकियों की ऊंचाई सात धनुष और मादेवकीस अंगूल कही है। और विक्रान्त नामक तेरहवें प्रस्तार में सात धनुष तीन हाथ तथा छ: अंगुल प्रमाण ऊंचाई है। इस प्रकार बुद्धिमान आचार्यों ने प्रथम पृथिवी में ऊचाई का वर्णन किया है।
दसरी पथिवी के स्तरक नामक पहले प्रस्तार में नारकियों की ऊंचाई पाठ धनुष, दो हाथ, दो अंगुल और एक अंगल के
चलिका की भूमि का विस्तार पंतालीस से गुरिणत और छप्पन से भाजित एक राजू प्रमाण ( राजु) है। उसी चूलिका की पाई हेतु राजु (१३) और मुस्खविस्तार भूमि के विस्तार का तीसरा भाग अर्थात तृतीयांस (४) है।
भमि में से मुख को घटाकर शेष में ऊंचाई का भाग देने पर जो लब्ध आवे उतना भूमि की हानि और मुख की अपेक्षा अति का प्रमाण छह राजु मुख, का प्रमाण एक राजु और के चाई का प्रमाण दुगुरिणत घेणी अर्थात चौदह राजू है।
उदाहरण -६-१:१४= हा. वृ. का प्रमाण प्रत्येक राजु पर।
हानि और बृद्धि का वह प्रमाण चौदह से भाजित पांच अर्थात एक राजु के चोदह भागों में पांच भाग मात्र है। इस भय वद्धि के प्रमाण को अपनी अपनी ऊंचाई से गुणा करके विविक्षित पृथिवी के (क्षेत्र के) विस्तार को ले आना चाहिये ।