________________
स्थिति एक समय अधिक सागर के दस भागों में छह भाग उत्कृष्ट स्थिति सागर के दश भागों में सात भाग प्रमाण है। वक्रान्त नामक ग्यारहवें प्रस्तार में जघन्य स्थिति एक समय अधिक सागर के दश भागों में सात भाग प्रमाण है और उत्कृष्ट स्थिति सागर के दश भागों में दस भागों में आठ भाग प्रमाण है । अबक्रान्त नामक बारहवें प्रस्तार में एक समय अधिक सागर के दश भागों में पाठ भाग प्रमाण जघन्य स्थिति है और एक सागर के दश भागों में नौ भाग प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति विद्वानों ने कही है। विक्रान्त नामक तेरहवें प्रस्तार में जघन्य स्थिति एक सागर के दश भागों में समयाधिक नो भाग प्रमाण है और उत्कृष्ट स्थिति सागर के दश भागों में दशों भाग अर्थात एक सागर प्रमाण है। इस प्रकार धर्मा नामक पहली पृथ्वी के तेरह प्रस्तारों में जघन्य तथा उत्कृष्ट स्थिति का कथन किया अब दूसरी पृथ्वी के ग्यारह प्रस्तारों में स्थिति का वर्णन करते हैं।
दूसरी पृथ्वी के स्तरक नामक प्रथम प्रस्तार में नारकियों की जघन्य प्रायु एक समय अधिक एक सागर पौ स्थिति एक सागर तया एक तार र माशों में दो अंश प्रमाण है। स्तनक नामक दूसरे प्रस्तार में यही जघन्य स्थिति है तथा एक सागर पूर्ण और एक सागर के ग्यारह भागों में चार भाग प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति है। मनक नामक तीसरे प्रस्तार में यही जघन्य स्थिति है और एक सागर पूर्ण तथा एक सागर के म्यारह भागों में छह भाग प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति है। वनक नामक चौथे प्रस्तार में विद्वानों ने यही जघन्य स्थिति एक सागर पूर्ण और एक सागर के ग्यारह भागों में पाठ भाग प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति कही है । विघाट नामक पांचवें प्रस्तार में यही जघन्य स्थिति तथा एक सागर पूर्ण और एक सागर के ग्यारह भागों में दश भाग प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति विज्ञ पुरुषों ने प्रकट की है--बतलाई है। संघाट नामक छठवें इन्द्रक अथवा प्रस्तार में यही जघन्य स्थिति है ओर दो सागर पूर्ण तथा एक सागर के ग्यारह भागों में एक भागप्रमाण उत्कृष्ट स्थिति है। जिल्ल नामक सातवें प्रस्तार में यही जघन्य स्थिति है और दो सागर पूर्ण तथा एक सागर के ग्यारह भागों में तीन भाग प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति है। जिह्वक नामक पाठवें प्रस्तार में यही जघन्य स्थिति है और दो सागर पूर्ण तथा एक सागर के ग्यारह भागों में पाँच भाग प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति है । लोल नामक नौवें प्रस्तार में यही जघन्य स्थिति तथा दो सागर पूर्ण और एक सागर के ग्यारह भागों में सात सागर प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति जानना चाहिये । लोलुप नामक दसवें प्रस्तार में यही जघन्य स्थिति और दो सागर पर्ण तथा एक सागर के ग्यारह भागों में नौ भाग प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति है। एवं स्तनलोलुप नामक ग्यारहवें प्रस्तार में यही जघन्य स्थिति और तीन सागर प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति है। इस तरह वंशा नामक दूसरी पृथ्वी में सामान्य रूप से तीन सागर प्रमाण स्थिति प्रसिद्ध है।
तीसरी पृथ्वी के तप्त नामक प्रथम इन्द्रक में तीन सागर जघन्य पीर तीन सागर पूर्ण तथा एक सागर के नौ भागों में चार भाग प्रमाण जघन्य स्थिति है। तपित नामक दूसरे इन्द्रक में यही जघन्य तथा तीन सागर पूर्ण और एक सागर के नौ भागों में पाठ भाग प्रमाण उत्कृप्ट स्थिति वर्णन करने योग्य है । तपन नामक तीसरे इन्द्रक में यही जघन्य और चार सागर पर्ण तथा एक सागर के नौ भागों में तीन भाग पूर्ण उत्कृष्ट स्थिति कही गई है। तापन नामक चौथे इन्द्रक में यही जघन्य
प्रबार पाठ भेद रूप है।
सामान्य लोक जग धेशी के बनमात्र है। आयात चतुरस क्षेत्र के वेध, कोटि और भुजा, ये तीनों कम से जगणी, जगधेरणी का अई भाग अर्थात् साढ़े तीन राजु और जगनेणी से दुगुणा अर्थात चौदह राजुप्रमाण है।
सामान्य लोक-७४७४७ आयत च का वेष ७ रा. कोटि = ३१० भुजा ७४२-१४ ग०। लोक को सत्तर से भाजित कर नब्ध राशि को पच्चीस से गुणित करने पर यथमुरज क्षेत्र में यवका प्रमाण आता है।
नौ से गणित लोक में चौदह का भाग देने पर रज क्षेत्र का पनफल आता है। इन दोनों के घन फल को जोड़ने से जम श्रेणी घन रूप सम्पूर्ण यवमुरज क्षेत्र का धनफल होता है।
तीन-३४३ : ७०४ २५ - १२२३ पद का प. फ. ३४३४६ - १४:२२०३ मुरज क्षेत्र का प. फः १२२३+२२०३-३४३ घमराजु सम्पूर्ण य.मु.क्षेत्र का घ. फ=७४७४७ पनराजु ।
७२