Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-१४
भाग देने पर एक भाग प्रमाण तो सर्वघाति तथा अवशेष देशघातिप्रकृति के परमाणु हैं। एक भाग प्रमाण सर्वघाती के परमाणुओं में सर्वघाती स्वरूप १७ प्रकृतियों का अर्थात् एक मिथ्यात्व और सोलह कषाय में बँटवारा करने के लिए १७ का भाग देने पर जो प्रमाण आवे उतने मिथ्यात्व-प्रकृति के परमाणु हैं। प्रथमोपशम सम्यक्त्व की प्राप्ति होने के प्रथम समय में ही मिथ्यात्व रूप एक कर्म के तीन कर्माश होते हैं। प्रथम समयवर्ती उपशम सम्यग्दृष्टि जीव मिथ्यात्व से उदीरणा को प्राप्त कर्मप्रदेशों को लेकर उनका बहुभाग यन्मिध्या में देती है और उससे असंखारागुफा हीन कर्मप्रदेशाग्र सम्यक्त्व प्रकृति में देता है। प्रथम समय में सम्यग्मिथ्यात्व में दिये गये प्रदेशों से द्वितीय समय में सम्यक्त्व प्रकृति में असंख्यात गुणित प्रदेशों को देता है और उसी समय में अर्थात् दूसरे ही समय में सम्यक्त्व प्रकृति में दिये गये प्रदेशों की अपेक्षा सम्यग्मिथ्यात्व में असंख्यातगुणित प्रदेशों को देता है। इस प्रकार अन्तर्मुहूर्त काल तक गुणसंक्रमण के द्वारा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व कर्म को पूरित करता है जब तक कि गुण संक्रमण काल का अन्तिम समय प्राप्त होता है । इस प्रकार मिथ्यात्व के जितने परमाणु हैं उनसे असंख्यातगुणेहीन सम्यग्मिध्यात्व के परमाणु हैं। इनसे असंख्यातगुणेहीन सम्यक्त्वप्रकृति के परमाणु हैं। इस प्रकार एक मिथ्यात्व के परमाणु तीन पुञ्जरूप हुए।
शंका - जो द्रव्य मिथ्यात्व रूप ही था उसका मिथ्यात्व करना कैसा?
समाधान - मिथ्यात्व की जो पूर्व स्थिति थी, उसमें से अतिस्थापनावली प्रमाण कम कर दिया। इस विधान से आचार्य ने असंख्यातगुणा हीन क्रम से मिथ्यात्व द्रव्य तीन रूप किया, ऐसा कहा
है।
उदाहरण - जैसे-समयप्रबद्ध के परमाणुओं की संख्या ६३०० है। गुणहानि की संख्या ८ है। और डेढ़गुणहानि का प्रमाण १२ है। ६३००४१२ - ७५,६०० यह सातकर्मों का परमाणुरूप सत्त्वद्रव्य
सातकर्मों के परमाणु ७५,६०० हैं तो मोहनीयकर्म के १०,८०० परमाणु होंगे। अब मोहनीयकर्म के परमाणुओं का बँटवारा चारित्रमोहनीय की पच्चीस व दर्शन-मोहनीय की एक इस प्रकार इन २६ कर्मों में किस प्रकार होगा उसी को बताते हैं -
२६ प्रकृतियों में से सोलह कषाय व मिथ्यात्व ये १७ सर्वघातिप्रकृति और शेष ९ प्रकृतियां । देशघाती हैं।
मोहनीय के परमाणुओं में अनन्त का भाग देकर जो लब्ध आवे वह द्रव्य सर्वघाती का और शेषद्रव्य देशघाती का समझना। अर्थात् मोहनीयकर्म के परमाणुओं की संख्या १०,८०० मानी है एवं ५. धवल पुस्तक ६ पृष्ठ २३५-२३६