________________
भगवती धर्मश्रवणार्यश्च महावीरसमीपे समागच्छतीस्यर्थः, "पडिगया परिसा" पतिगता पर्पत्-धर्मदेशना शुस्वा ममं वन्दिरमा जनाः स्वस्त्रस्यानं गतवन्तः ॥
चमरस्य फीशी विकुर्वणा श्वक्तितसे ? इति भगवन्त महावीरस्वामिन मति द्वितीयगणधरस्याऽग्निभूतेः मन्नम्वक मयमम्ञमाह-" वेण कासेन तेणं समएण" इत्यादि । अन्तेवासी-अन्ते गुरोः समीपे गुरोरामायां वा त्रसित शीलमस्येति, अन्वेवासिशब्द' शिप्यार्थको पोय | "अणगारे" अनगार, यविधमानम् अगार गृह यस्य स अनगार• अगाररहित पुत्रकलाधनादि लिये और उनसे धर्मश्रवण के लिये उन भगवान महावीर के पाम
आई 'पडिगया परिसा' धर्मदेशना सुनकर और प्रभुको वदना कर मनुष्य अपने २ स्थान पर वापिस लौट आये। अय मूत्रकार इस यातको इस सुन्न धारा प्रकट करते हैं कि भगवान् महावीर के शिष्य वित्तीय गणधर अग्निभूति ने उनसे 'चमरकी कैसी विकुर्वणा शक्ति है। इस विषय में प्रभकिया 'तेणं कालेण तेणे समएण' उसकाल और उस समयमें "समणस्स भगवभो महावीरस्स दोचे अंतेवासी अग्गिमूई नाम अणगारे' अमण भगवान् महावीर के वितीय अन्तेवास अग्निभूति नामके अनगार थे 'अन्ते गुरोसमीपे गुरुराज्ञाया था पसितुं शील यस्य स ' इति अन्तेवासी-गुरु के समीप अपवा गुरु की आज्ञा में बसने का जिनका स्वभाव हो वह मन्तेवासी शिष्य कहलाता है। "अविधमान अगार गृह यस्य स अनगार" सिमके घर नहीं है वे ही अनगार हैं। अगार यह उपलक्षण है इससे यह समझना धापरय पान मारे परिव जी भने पानी पासे भावी "परिगया परिसाध्या सामान तथा प्रभुन १४ नमः४।२ ४श परिध विसन પામી. સૌ પોતપેતાને સ્થાને પાછા ફર્યા ત્યારે ભગવાન મહાવીરના શિષ્ય અને બીન ગરૂ અગ્નિભૂતિએ ચમત્ની વિણ શકિત (રૂપ બદલવાની શક્તિ) વિષે જે પ્રશ્ન પૂછ્યું તે સૂત્રકાર બતાવે છે—
वेणं फाठेणं तेणं समएणं" मेमने सभये "समणस्स भगवयो महावीरस्स दोचे अतेवासी भय भवान श्री भावीपाभीना भी सिप भी मसिमति नामना मा२ . “अतेवासी" न म । अभाव " भन्ते गुरुसमीपे गुरोरामाया षा पसि शीळ यस्य सः" ५ मा ગુની આજ્ઞા પ્રમાણે વસવાની જેને ટેવ છે તેને અંતેવાસી શિપ) જાય છે "अविधमान ज्गार गृह यस्य स अनगार " ने नया मापाय