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१७ वाँ वर्ष
२. अशरणभावना-संसारमे मरणके समय जीवको शरणमे रखनेवाला कोई नही है, मात्र एक शुभ धर्मकी शरण ही सत्य है, ऐसा चिंतन करना, यह दूसरी अशरणभावना ।
३. संसारभावना-इस आत्माने ससारसमुद्रमे पर्यटन करते-करते सर्व भव किये हैं। इस ससार बेड़ीसे मैं कब छुटूंगा? यह संसार मेरा नही है, मैं मोक्षमयी हूँ, इस तरह चिंतन करना, यह तीसरी संसारभावना।
४. एकत्वभावना-यह मेरा आत्मा अकेला है, यह अकेला आया है, अकेला जायेगा, अपने किये हुए कर्मोको अकेला भोगेगा, अंत करणसे इस तरह चिंतन करना, यह चौथी एकत्वभावना।।
५. अन्यत्वभावना-इस ससारमे कोई किसीका नही है, इस तरह चिंतन करना, यह पाँचवी, अन्यत्वभावना।
६. अशुचिभावना-यह शरीर अपवित्र है, मल-मूत्रकी खान है, रोग-जराका निवासधाम है, इस शरीरसे मैं न्यारा हूँ, इस तरह चिंतन करना, यह छठी अशुचिभावना।
७. आस्रवभावना-राग, द्वेष, अज्ञान, मिथ्यात्व इत्यादि सर्व आस्रव हैं, इस तरह चिंतन करना, यह सातवी आस्रवभावना।
८. संवरभावना-ज्ञान, ध्यानमे प्रवर्तमान होकर जीव नये कर्म नही बॉधता, यह आठवी सवरभावना।
९. निर्जराभावना-ज्ञानसहित क्रिया करना यह निर्जराका कारण है, इस तरह चिंतन करना, यह नौवी निर्जराभावना।
१०. लोकस्वरूपभावना-चौदह राजूलोकके स्वरूपका विचार करना, यह दसवी लोकस्वरूपभावना।
११. बोधिदुर्लभभावना-संसारमे भ्रमण करते हुए आत्माको सम्यग्ज्ञानको प्रसादी प्राप्त होना दुर्लभ है, अथवा सम्यग्ज्ञान प्राप्त हुआ तो चारित्र-सर्वविरतिपरिणामरूप धर्म प्राप्त होना दुर्लभ है, इस तरह चिंतन करना, यह ग्यारहवी बोधिदुर्लभभावना।।
१२. धर्मदुर्लभभावना-धर्मके उपदेशक तथा शुद्ध शास्त्रके बोधक गुरु और उनके उपदेशका श्रवण मिलना दुर्लभ है, इस तरह चिंतन करना, यह बारहवी धर्मदुर्लभभावना ।
इस प्रकार मुक्ति साध्य करनेके लिये जिस वैराग्यकी आवश्यकता है उस वैराग्यको दृढ़ करनेवाली बारह भावनाओमेसे कुछ भावनाओका इम दर्शनके अन्तर्गत वर्णन करेंगे। कुछ भावनाएं कुछ विषयोमे वाट दी गयी हैं, और कुछ भावनाओके लिये अन्य प्रसगको आवश्यकता है, अतः यहाँ उनका विस्तार नही किया है।
प्रथम चित्र अनित्यभावना
( उपजाति ) , विद्युत लक्ष्मी प्रभुता पतंग,
आयुष्य ते तो जळना तरंग; पुरंदरी चाप अनंग रंग,
शुं राचीए त्यो क्षणनो प्रसंग !