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३२ वा वर्ष
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मुनि महात्मा श्री देवकीर्णस्वामी अजारकी ओर है। यदि खेराळसे मुनिश्री आज्ञा करेंगे तो वे हुत करके गुजरातकी तरफ आयेंगे | वेणासर या टीकरके रास्तेसे धागध्रा आना हो तो रेगिस्तान पार रनेके कष्टको उठानेका सम्भव कम है । मुनिश्रीको अजार लिखें।
किसी स्थलमे विशेष स्थिरताका योग होनेपर अमुक सत्श्रुत प्राप्त होना योग्य है।
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श्री ववाणिया, चैत्र सुदी ५, १९५५
द्रव्यानुयोग परम गम्भीर और सूक्ष्म है, निग्रंथ-प्रवचनका रहस्य है, शुक्ल ध्यानका अनन्य कारण है। शुक्ल ध्यानसे केवलज्ञान समुत्पन्न होता है। महाभाग्यसे इस द्रव्यानुयोगकी प्राप्ति होती है ।
दर्शनमोहका अनुभाग घटनेसे अथवा नष्ट होनेसे, विषयके प्रति उदासीनतासे, और महत् पुरुषके चरणकमलकी उपासनाके बलसे द्रव्यानुयोग परिणत होता है।
ज्यो-ज्यो सयम वर्धमान होता है, त्यो-त्यो द्रव्यानुयोग यथार्थ परिणत होता है। सयमको वृद्धिका कारण सम्यग्दर्शनकी निर्मलता है, उसका कारण भी 'द्रव्यानुयोग' होता है।
सामान्यत. द्रव्यानुयोगकी योग्यता प्राप्त करना दुर्लभ है । आत्मारामपरिणामी, परमवीतराग दृष्टिवान्, परम असग ऐसे महात्मापुरुष उसके मुख्य पात्र हैं।
किसी महत्पुरुषके मननके लिये 'पचास्तिकायका सक्षिप्त स्वरूप लिया था, उसे मननके लिये इसके साथ भेजा है।
हे आर्य | द्रव्यानुयोगका फल सर्व भावसे विराम पानेरूप सयम है। इस पुरुषके ये वचन अत - करणमे तू कभी भी शिथिल मत करना । अधिक क्या ? समाधिका रहस्य यही है । सर्व दु.खसे मुक्त होनेका अनन्य उपाय यही है।
८६७ ववाणिया, चैत्र वदी २, गुरु, १९५५ हे आर्य । जैसे रेगिस्तान पार कर पारको सप्राप्त हुए, वैसे भवस्वयभरमण तर कर पारको सप्राप्त होवे ।
महात्मा मनिश्रीकी स्थिति अभी प्रातीज-क्षेत्रमे है। कुछ विज्ञप्ति-पत्र लिखना हो तो परी० घेलाभाई केशवलाल, प्रातीज, इस पतेपर लिखनेकी विनती है।
आपकी स्थिति धागध्राकी तरफ होनेका समाचार यहाँसे आज उन्हे लिखा गया है।
अधिक निवत्तिवाले क्षेत्रमे चातुर्मासका योग बननेसे आत्मोपकार विशेष सभव है। मुनिश्रीको भी वैसे सूचित किया है।
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ववाणिया, चैत्र वदी २, गुरु, १९५५ पत्र प्राप्त हुआ। किसी विशेष निवृत्तिवाले क्षेत्रमे चातुर्मास हो तो आत्मोपकार विशेष हो सकता है। इस तरफ निवृत्तिवाले क्षेत्रका सभव है ।
मन कच्छका रेगिस्तान समाधिपूर्वक पार कर धागध्राकी तरफ उनके विचरनेके समाचार प्राप्त
१. देखें आक ७६६ ।