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३३ वॉ वर्ष
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ववाणिया, वैशाख वदी ९, वुध, १९५६
आज पत्र प्राप्त हुआ। • साथके पत्र का उत्तर-पत्रानुसार क्षेत्रमे आज गया है। शरीरप्रकृति उदयानुसार सहज स्वस्थ
शांतिः
. ९२४
ववाणिया, वैशाख वदी १३, शनि, १९५६
- आर्य मुनिवरोके चरणकमलमे यथाविधि नमस्कार प्राप्त हो। वैशाख वदी ७ सोमवारका लिखा पत्र प्राप्त हुआ।
___ नडियाद, नरोडा और वसो तथा उनके सिवाय अन्य कोई क्षेत्र जो निवृत्तिके अनुकूल तथा आहारादि सम्बन्धी विशेष सकोचवाला न हो वैसे क्षेत्रमे तीन तीन मुनियोके चातुर्मास करनेमे श्रेय ही है।
१. इस वर्ष जहाँ उन वेषधारियोकी स्थिति हो उस क्षेत्रमे चातुर्मास करना योग्य नहीं है । नरोडामे आर्याओका चातुर्मास उन लोगोके पक्षका हो तो वह होनेपर भी आपको वहां चातुर्मास करना अनुकूल लगता हो तो भी बाधा नही है; परन्तु वेषधारीके समीपके क्षेत्रमे भी अभी यथासभव चातुर्मास न हो तो अच्छा।
- ऐसा कोई योग्य क्षेत्र दीखता हो कि जहाँ छहो मुनियोका चातुर्मास रहते हुए आहार आदिका सकोच विशेष न हो सके तो उस क्षेत्रमे छहो मुनियोको चातुर्मास करनेमे बाधा नही है, परंतु जहाँ तक बने वहाँ तक तीन तीन मुनियोका चातुर्मास करता. योग्य है।
। जहाँ अनेक विरोधी गृहवासी जन या उन लोगोको रागदृष्टिवाले हो अथवा जहाँ आहारादिका, जनसमूहका सकोचभाव रहता हो वहाँ चातुर्मास योग्य नहीं है । वाकी सर्व क्षेत्रोमे श्रेयस्कर ही है। । ।
• , आत्मार्थीको विक्षेपका हेतु क्या हो ? उसे सब समान ही हैं । आत्मतासे विचरनेवाले आर्य पुरुषोको धन्य है।
ॐ शाति ९२५ ववाणिया, वैशाख वदी ३०, सोम, १९५६
आर्य मुनिवरोके लिये अविक्षेपता सभव है । विनयभक्ति यह मुमुक्षुओका धर्म है।
अनादिसे चपल ऐसे मनको स्थिर करें। प्रथम अत्यततासे विरोध करे इसमे कुछ आश्चर्य नही है । क्रमश उस मनको महात्माओने स्थिर किया है, शात किया है, क्षीण किया है, यह सचमुच आश्चर्यकारक है।
____९२६ ।ववाणिया, वैशाख वदी ३०, सोम, १९५६
मुनियोंके लिये अविक्षेपता ही सभव हे । मुमुक्षुओंके लिये विनय कर्तव्य है। 'क्षायोपशमिक असख्य, क्षायिक एक अनन्य ।'
(अध्यात्म गीता) • मनन और निदिध्यासन करनेसे, इस वाक्यसे जो परमार्थ अतरात्मवृत्तिमे प्रतिभासित हो उसे यथाशक्कि लिखना योग्य है।
शातिः