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आभ्यंतर परिणाम अवलोकन-संस्मरणपोथी १
८३१ .. ८२ . . . . .[संस्मरण-पोथी १; पृष्ठ १७४]
...जैनमार्गः: .... ...... ........ १: लोकसंस्थान ! : : ..
..... .. : .. २. धर्म, अधर्म, आकाश द्रव्य । ..... .................. ३. अरूपित्व। ४. सुषम-दुषम आदि काल । ५. उस उस कालमें भारत आदिकी स्थिति, मनुष्यकी ऊँचाई आदिका प्रमाण । ६. निगोद सूक्ष्म । ७. दो प्रकारके जीव-भव्य और अभव्य । ८. विभावदशा, पारिणामिक भावसे । ९. प्रदेश और समय उनका व्यावहारिक और पारमाथिक कुछ स्वरूप। ............ १०. गुण-समुदायसे भिन्न कुछ द्रव्यत्व ।। ११. प्रदेश समुदायका वस्तुत्व । १२. रूप, रस, गंध, स्पर्शसे भिन्न ऐसा कुछ भी परमाणुत्व । १३. प्रदेशका संकोच-विकास।::: :: .:
..... १४. उससे घनत्व या कृशत्व ।
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१६. एक समयमें यहाँ और सिद्धक्षेत्रमें अस्तित्व, अथवा उसी समयमें लोकांतरगमन 1.:.
: १७: सिद्धसंबंधी अवगाहः। ..: ::
.......... १८. अवधि, मनःपर्याय और केवलको ..व्यावहारिक पारमार्थिक कुछ व्याख्या;-जीवकी अपेक्षा
तथा दृश्य पदार्थकी अपेक्षासे । ... .. .:. : -..[संस्मरण-पोथी १, पृष्ठ १७५] ...
'मतिश्रतकी व्याख्या-उस प्रकारसे ।' . . .--... १९. केवलज्ञानकी दूसरी कोई व्याख्या। २०. क्षेत्र प्रमाणकी दूसरी कोई व्याख्या। २१. समस्त विश्वका एक अद्वैत तत्त्वपर विचार । २२. केवलज्ञानके बिना दूसरे किसी ज्ञानसे जीवस्वरूपका प्रत्यक्षरूपसे ग्रहण । .. २३. विभावका उपादान कारण । २४. और तथाप्रकारके समाधानके योग्य कोई प्रकार ।.. २५. इस कालमें दस बोलोंकी व्यवच्छेदता, उसका अन्य कुछ भी परमार्थ । २६. बीजभूत और संपूर्ण यों केवलज्ञान दो प्रकारसे। २७. वीर्य आदि आत्मगुण माने हैं, उनमें चेतनता। २८. ज्ञानसे भिन्न ऐसा आत्मत्व। २९. वर्तमानकालमें जीवका स्पष्ट अनुभव होनेके ध्यानके मुख्य प्रकार । ३०. उनमें भी सर्वोत्कृष्ट मुख्य प्रकार । ३१. अतिशयका स्वरूप। . ३२. लब्धि (कितनी ही) अद्वैततत्त्व माननेसे सिद्ध हो ऐसी मान्य है।
संस्मरण-पोयी १, पष्ठ १७९] ३३. लोकदर्शनका सुगम मार्ग-वर्तमानकालमें कुछ भी।