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माम्यंतर परिणाम अवलोकन-संस्मरणपोथी ३. संस्मरण-पोथी ३
[संस्मरण-पोथी ३, पृष्ठ ३] ॐ नमः सर्वज्ञ जिन
वीतराग
..१
सर्वज्ञ है। रागद्वेषका आत्यंतिक क्षय हो सकता है। ज्ञानका प्रतिबंधक रागद्वेष है। ज्ञान, जीवका स्वत्वभूत धर्म है। जीव, एक अखण्ड संपूर्ण न होनस उसका ज्ञानसामर्थ्य संपूर्ण है।
4 [संस्मरण-पोथी ३, पृष्ठ ७] सर्वज्ञपद वारंवार श्रवण करने योग्य, पठन करने योग्य, विचार करने योग्य, ध्यान करने योग्य ___ और स्वानुभवसे सिद्ध करने योग्य है।
सर्वज्ञदेव निग्रंथ गुरु उपशममूल धर्म ...
[संस्मरण-पोथी ३, पृष्ठ ९] सर्वज्ञदेव निग्रंथ गुरु दयामूल धर्म
सर्वज्ञ देव
निग्रंथ गुरु . . . . . . . ::. : . . . सिद्धांतमूल धर्म ... .
:: . .....
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सर्वज्ञदेव .. . . . निग्रंथ गुरु जिनाज्ञामूल धर्म
सर्वज्ञका स्वरूप निग्रंथका स्वरूप धर्मका स्वरूप
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सम्यक् क्रियावाद