SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 978
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५४१ माम्यंतर परिणाम अवलोकन-संस्मरणपोथी ३. संस्मरण-पोथी ३ [संस्मरण-पोथी ३, पृष्ठ ३] ॐ नमः सर्वज्ञ जिन वीतराग ..१ सर्वज्ञ है। रागद्वेषका आत्यंतिक क्षय हो सकता है। ज्ञानका प्रतिबंधक रागद्वेष है। ज्ञान, जीवका स्वत्वभूत धर्म है। जीव, एक अखण्ड संपूर्ण न होनस उसका ज्ञानसामर्थ्य संपूर्ण है। 4 [संस्मरण-पोथी ३, पृष्ठ ७] सर्वज्ञपद वारंवार श्रवण करने योग्य, पठन करने योग्य, विचार करने योग्य, ध्यान करने योग्य ___ और स्वानुभवसे सिद्ध करने योग्य है। सर्वज्ञदेव निग्रंथ गुरु उपशममूल धर्म ... [संस्मरण-पोथी ३, पृष्ठ ९] सर्वज्ञदेव निग्रंथ गुरु दयामूल धर्म सर्वज्ञ देव निग्रंथ गुरु . . . . . . . ::. : . . . सिद्धांतमूल धर्म ... . :: . ..... . . . सर्वज्ञदेव .. . . . निग्रंथ गुरु जिनाज्ञामूल धर्म सर्वज्ञका स्वरूप निग्रंथका स्वरूप धर्मका स्वरूप . ... . सम्यक् क्रियावाद
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy