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दोहा अथवा देह ज आतमा अथवा निज परिणाम जे अथवा निश्चय नय ग्रहे अथवा मत-दर्शन घणा अथवा वस्तु क्षणिक छे अथवा सद्गुरुए कह्या अथवा ज्ञान क्षणिकनु असद्गुरु ए विनयनो अहो | अहो | श्री सद्गुरु आगळ ज्ञानी थई गया आत्मज्ञान त्या मुनिपण आत्मज्ञान समदर्शिता आत्मभ्राति सम रोग नहि आत्मा छे ते नित्य छे आत्मादि अस्तित्वना आत्म द्रव्ये नित्य छे आत्माना अस्तित्वना आत्मानी शका करे आत्मा सत् चैतन्यमय आत्मा सदा असग ने आ देहादि आजथी आवे ज्या एवी दशा ईश्वर सिद्ध थया विना ऊपजे ते सुविचारणा उपादाननु नाम लई एक राक ने एक नृप । एक होय पण काळमा ए ज धर्मयी मोक्ष छे ए पण जीव मतार्यमा एम विचारी अतरे एवो मार्ग विनयतणो फई जातिमा मोक्ष छे मर्ता देवर कोई नहि रा जीव न कमनो पता भोक्ता कर्मनी
परिशिष्ट २ आत्मसिद्धिशास्त्रके दोहोंकी वर्णानुक्रमणिका
क्रमाक पृष्ठ | वोहा
४६-५४६ । कर्ता भोक्ता जीव हो १२२-५६३ कर्मभाव अज्ञान छे २९-५४४ कर्म अनत प्रकारना ९३-५५९ कर्मवध क्रोधादिथी ६१-५४८ कर्म मोहनीय भेद वे १४-५४२ कपायनी उपशातता ६९-५५१ कषायनी उपशातता २१-५४३ केवळ निज स्वभावनु १२४-५६३ केवळ होत असग जो १३४-५६५ कोई क्रिया जड थई रह्या 1 - ३४-५४५ कोई सयोगोथी नही
१०-५४० कोटि वर्षनु स्वप्न पण १२९-५६४ क्यारे कोई वस्तुनो ४३-५४६ क्रोधादि तरतम्यता १३-५४२ गच्छ-मतनी जे कल्पना ६८-५५१ घटपट आदि जाण तु ५९-५४८ चेतन जो निजभानमा ५८-५४८ छूटे देहाघ्यास तो १०१-५६० छे इन्द्रिय प्रत्येकने
७२-५५२ छोडी मत दर्शन तणो १२६-५६३ जड चेतननो भिन्न छे ४०-५४६ जडथी चेतन ऊपजे ८१-५५६ जाति वेपनो भेद नहि . . ४२-५४६ । जीव कर्म कर्ता कहो .. १३६-५६५ । जे जिनदेह प्रमाण ने , ८४-५५७ जे जे कारण बघना
जे द्रष्टा छे दृष्टिनो ११६-५६२ जेना अनुभव वश्य ए ३१-५४४ जेम शुभाशुभ कर्मपद ३७-५४५ जे सद्गुरु उपदेशथी २०-५४३ जे सयोगो देखिये ९४-५५९ जे स्वरूप समज्या विना ७७-५५३ जो चेतन करतु नयी ७१-५५२ | जो इच्छो परमार्थ तो १२१-५६३ । ज्ञान दशा पामे नहीं
क्रमांक पृष्ठ
८७-५५८ ९८-५६० १०२-५६० १०४-५६० १०३-५६०
३८-५४५ १०८-५६१ ११३-५६२ ७६-५५३ ' ३-५३४
६६-५५० ११४-५६२ ७०-५५१ ६७-५५० १३३-५६४ ५५-५४८ ७८-५५५
११५-५६१ । ५२-५७
-१०५-५.१ .: ५७-४८
६५-१५० . १०७-५६१ , ७-५५५
५-५४३ १९-५६० ५१-५४७ ६३-५४९ ८९-५५८ १९-५४३ ६४-५५०
१-५३४ ७५-५५३ १३०-५६४ ३०-५४४