Book Title: Shrimad Rajchandra
Author(s): Hansraj Jain
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 1033
________________ श्रीमद राजचन्द्र आ आनंदघन-आनदसे परिपूर्ण, श्री लाभानन्दजी मुनिआकाशद्रव्य-जीवादि समस्त द्रव्योको अवकाश देने- का दूसरा नाम। वाला द्रव्य । आप्त-जिसके विश्वासपर मोक्षमार्गमें प्रवृत्ति की जा आकाक्षा मोहनीय-मिथ्यात्वमोहनीयका एक प्रकार, सके । (आक ७७७) सर्व पदार्थोंको जानकर उनके मासारिक सुखकी इच्छा करना । स्वरूपका सत्यार्थ प्रगट करनेवाला । (पृष्ठ ७७५) आक्रोश-क्रोध करना, गाली देना, निन्दा । आम्नाय-सम्प्रदाय, परम्परा, परिपाटी ।। आगम-धर्मशास्त्र, ज्ञानीपुरुपोंके वचन । आरंभ-किसी भी क्रियाकी तैयारी, हिंसाका काम । आगमन-आना। आरा-काल चक्र, उत्सर्पिणी-अवसर्पिणीका विभाग। आगार-घर, व्रतोमें छूटछाट । देखें मोक्ष माला पाठ ८१ । आग्रह-इच्छानुसार करने करानेकी वृत्ति, हठ, दृढ आराधना-पूजा; उपासना, साधना।। मान्यता। आराध्य-आराधना करने योग्य । आचरण-व्यवहार, वर्ताव । आत-पीडित । आचार्य-जो साधुओको दोक्षा, शिक्षा देकर चारित्रका आर्तव्यान-किसी भी पर पदार्थमें इच्छाकी प्रवृत्ति है ___ ओर किसी भी पर पदार्थक वियोगकी चिन्ता है, __पालन कराते है। उसे श्री जिन आतघ्यान कहते है । आक ५५१ आज्ञा-आदेश, अनुमति, हुक्म । आर्य-उत्तम। (आर्य शब्दसे जिनेश्वर, मुमुक्षु और आज्ञा-आराधक-आज्ञानुसार चलनेवाला । ___ आर्यदेशमें रहनेवालेको सम्बोधित किया जाता है) आज्ञाधार-आज्ञापूर्वक । (आत्मसिद्धिः दोहा-३५) आर्य आचार-मुख्यत दया, सत्य, क्षमा आदि गुणोआठ समिति-तीन गुप्ति और पाँच समिति । का आचरण करना । (आक ७१७) आतापनयोग-धूपमे बैठकर या खडे रहकर ध्यान आर्य देश-उत्तम देश । जहाँ आत्मा आदि तत्त्वोकी करना। विचारणा हो सके, आत्मोन्नति हो सके ऐसी अनुआत्मवाद-आत्माको बतानेवाला, आत्मस्वरूपको कूलतावाला देश। कहनेवाला। आर्य विचार-मुख्यत आत्माका अस्तित्व, नित्यत्व, आत्मवीर्य-आत्माकी शक्ति । वर्तमानकाल तक उस स्वरूपका अज्ञान तथा उस आत्मसयम-आत्माको वश में करना । अज्ञान और अभानके कारणोका विचार । (आक आत्मश्लाघा-अपनी प्रशसा । ७१७) आत्मा-ज्ञानदर्शनमय अविनाशी पदार्थ । आलेखन-लिपिवद्ध करना, चित्र बनाना । आत्मार्थो-आत्माकी इच्छावाला । “कपायनी उप- आवरण-परदा, विघ्न । - शातता, मात्र मोक्ष अभिलाप, भवे खेद, प्राणी दया, आवश्यक-अवश्य करने योग्य कार्य या नियम । त्या आत्मार्थ निवास।" (आत्मसिद्धि दोहा-३८) सयमीके योग्य क्रिया। आत्मानुभव-आत्माका साक्षात्कार । आविर्भाव-प्रगट होना, उत्पत्ति । आत्यतिक-पूर्णरूपसे, अत्यतरूपसे, सम्पूर्ण । आशका मोहनीय-जो स्वयको समझमें न आवे, सत्य आदि अंत-प्रारभ और अत । जानते हुए भी उसके प्रति यथार्थ भाव (रुचि) न आदिपुरुष-परमात्मा । प्रगटे । (उपदेशछाया) आदेश-आज्ञा । आशुप्रज्ञ-जिसकी बुद्धि तत्काल काम करे । विचक्षण, आधार-सहारा, आश्रय । हाजिरजवाव । आधि-मानसिक व्यथा, चिंता। आश्रम-विश्रामका स्थान, ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ आधुनिक-वर्तमान समयका, नवीन, अर्वाचीन । और सन्यस्त इन जीवन-विभागोमेंसे कोई भी एक।

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