Book Title: Shrimad Rajchandra
Author(s): Hansraj Jain
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram
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. श्रीमद् राजचन्द्र, ज्ञानीपुरुप ३५९, ४४५, ४५५, ४९८-९, ६५५,७२, तीन मुमुक्षुता २९१ :
७४३, ७८०, ८१४, ०का योग होनेके बाद ससार-: तृष्णा ९४, ९५, ४६१; ०कैसे - निर्बल हो? ५२४.५० का सेवन करनेवाला तीर्थंकरके मार्गसे बाहर ३६२, ७३५, ७४६, ०पर दृष्टात ९३-५ . - ०की पहचान न होनेमे जीवके तीन, महान दोषः तेरहवें गुणस्थानवर्तीका स्वरूप, ३४२ , ....."
३६४, ०की प्रवृत्ति कैसी ?:३७८, .-९को, सिद्धि- तेजस् शरीर ७६९, ७९२, , ...... ,योग ३८०, के वचन दर्शनका प्रभाव ,३८३, त्याग ४५९, ४९७, ७७१, ०का क्रम ५१९, ५२२, - १.७१३, और अज्ञानीमें भेद ३९०-४७४, ०के वैराग्य की सफलता ५३५- , ,
.. प्रति अभिन्न बुद्धि, ३९१, की प्रवृत्ति प्रारख्यानु- त्रस ५९३ .. - सार ३९९, की । आज्ञाकी महत्ता-४१९, ६८१, त्रिपदी १२३-५, ६३२, ७७३, ७७८ ... .", की पहचानका फल ४२६, ०के सत्सगका फल दया ७०९, सर्वमान्य धर्म ६०, के आठ भेद ६६,. । ,४४७-८, ०के दृढाश्रयका फल,४५४, ०के आश्रयमें ही धर्मका स्वरूप-श्रेणिकके सामतोका दृष्टात ८१ , विरोध - करनेवाले , दोप और उनका निराकरण दर्शन ७९७; ०और ज्ञान एक साथ ७२८ आस्तिक, . --४६१, ०की, भोगप्रवृत्ति पूर्व पश्चात् पश्चात्ताप- ५२८-९
. ___वाली ४६८, १ उपदेशमें सक्षेपसे प्रवृत्ति- क्यो करे ? दर्शनपरिषह ३२४, ४४२ . . - ५०२, ०और. अज्ञानीको वाणीमें , भेद ५०३, ०की दर्शनमोह, ६५२६,६८६: के नाशका उपाय, ५६ ,, दशा .५६५-६, ६९३, का मार्ग. सुलभ ,६८१, ०घटनेके हेतु ६४१, ०घटनेसे द्रव्यानुयोगका
०और शुष्क ज्ञानीमें भेद ६९७, के तीन प्रकार परिणमन,६४३ , " (" . ..६९७, ०की प्रवृत्ति बाह्य : ७०२, की प्रत्येक दर्शनावरणीय ६९३ . . आज्ञा कल्याणकारी ७१८, ०के प्रत मोक्षदायक दासानदास भाव ४४
. . # ,७११, अविरत रहकर व्रत नहीं देते ७१९, ०की दिगबर वृत्ति ६२३, ७७९, ७९२, ७९८ । । , वर्तमानमे प्रतीति नही, ७३४, , , ,ज्ञायकता ३७५ .. ....
दुखनिवृत्तिका 'उपाय ७२०२, ३३८, ४००,०४५७, ज्योतिष, कल्पित क्यो । २७८ .. .. ४५८, ५८७, ६२६, ८३५ ढूंढिया ७१७,७१९,७२३, ,७४३, ,"
दुनिया, ० को अति स्थिति क्या ? '४३७, का प्रलय तत्त्व, समझने पर दृष्टात ७८
.. तत्त्वमसि.२४० -11 . , . .
दुपच्चक्खान २२६, ७०२ , . . तत्त्वावबोध १२०-३९. ० --
दुषमकाल ३५२, ३७२,.३८२,, ४९९, ६३०, ६६८, तप २७, ५७, किस लक्ष्यसे ? ७०७, के छ, प्रकार के कारण ३६६
७३०, -- 371 दृष्टात, चन्द्रसिंहका(जनसिद्धात विषयक) ..२४; तरनेका कामी ७३१-२, ७४४ ७४८ ,
भिखारीका (अनित्य भावना) ३८, ९०, तिथिका आग्रह आत्महितार्थ ७१४,,७१६,,७१९,७३० , ०अनाथीमुनिका (अशरण :; भावना) :३९, ,६३३२ तीर्थयात्रा ६६५ -
१० नमिराजर्षिका-(एकत्व भावना) ४२, भरतेश्वरतीर्थकर ३२१, ३७१, ३७३, ३७,६, और केवलीमें का.(अन्यत्व भावना) ४६, सनत्कुमार का(अशुचि,
भेद १३२, ०का - उपदेशः १३३, कोर देवता कैसे भावना) ४९, ११२, मृगापुत्रका (निवृत्तिवोध)। जाने ? ३०८, ०के भिक्षार्थ जाते हुए। सुवर्णवृष्टि ५१, ०कुडरिकका (आस्रव भावना), ५५,९पुडरिक ३६०, ०का अतिशय ७९४, ०को दर्शन और ज्ञान ___तथा ववस्वामीका (सवर भावना), ५६, दृढ
एक साथ ७९८, गोत्र ७८६ ४८., ivifa प्रहारीका. (निर्जरा भावना) १५७, बाहुबलका तात्र ज्ञानदशा:४६० १ .? - 3
(मान छोड़ने पर) ७१, कामदेव, श्रावकका (धर्म
-
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दीक्षा ३५७, ३५८, ३७१, ६७०
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