Book Title: Shrimad Rajchandra
Author(s): Hansraj Jain
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 1065
________________ ९३० श्रीमद राजचन्द्र ६८२, सच्चा मेला ६८३, ०का फल ६९८-९, सर्वसगपरित्याग २०२, ३२६, ४९५-६, ५०२, से दोष दूर होते हैं ७३९, ०का योग दुर्लभ सकल्प ५८० १७४, ६३२, ६४८ सज्ञा ५८०, ७७२ सद्गुरु १९९, २०२, २३५, २४९, २९५, ३००, सन्यासी ६९० ३०२, ४६२, ४९३, ४९९, ६७१, ६९१, ७०५, सयतिधर्म ५२, १८६-९; ०में पत्र-समाचारादिका निषेध ७२६, ७३१, ७७५, ७८५, नि स्वार्थी गुरु २८, ४०८, अति सकुचित मार्ग क्यो ? ६०६, ७१४, तत्त्व ६६, व्या महावीर स्वामी विशेष उपकारी? में एकवार आहार ग्रहण ६३८ ४३०, ०से ही मार्ग प्राप्ति ५३७-९, ०के लक्षण सयम ६०६, ६४३, ७५५, ८१४, ०के प्रकार ४९७, ५४०, ६३३-४, ०का अपार उपकार ५६३; के ८०८-९ सत्संगमें झूठ बोलकर न जाना ६९५; ०और सलेखना ७९२ आत्मा एक ७३१ सवर ७०९, भावना ५६, द्रव्य और भाव ५९४ सद्धर्म तत्त्व ६५ सवेग २२९, ७२९ सद्व्यवहार ५६५ ससार, ०का स्वरूप ७२, की चार उपमाएँ ७३-४, समता ३७४, समभाव १८३, कैसे आये ? ७०० परिभ्रमणके कारण १७८, ७७१, ०में रहना कब समदर्शिता ६३४-५ योग्य ? ३१३, ०के प्रतिकूल प्रसग हितकारी समय ४७४,५०४ ३७८, ४००, ०के मुख्य दो कारण ४५६ समाधि ४५०, ४५७, ७३३, सुख ४५९, ०का स्थान ससार अनप्रेक्षा २२, ०पर दुष्टात ५० ६७० ससारी जीव, और सिद्ध में परमात्मस्वरूपका भेद ४१७, समिति ६०६, ७९१ ___ में परमात्मस्वरूप अप्रगट ४६७ सम्यक्त्व (समकित) ५३१, ५४२, ५६९, ५९४, ६३६, सस्कृत अभ्यास ६४७, ६६६ ६९८, ७३३-४, ७५३, ७५५, ७६७; कद होता सातवां गुणस्यानक ७६६ है ? १७९, ०का माहात्म्य २०८, .सर्वगुणाश साधु ७४६, ७९८ २०९, के पांच लक्षण २२८, ७५६, का मुख्य सामान्य नित्यनियम १०० लक्षण वीतरागता ३२२; ०के भेद ५२७, ५६२; सामायिक ८७-९, ७३१, ७५४ के बाद पन्द्रह भव ५६१, ६०७-८; के तीन साख्य ५२८ प्रकार आत्मसिद्धिमें ५८०; प्रतीतिरूप ६०९, सास्वादन सम्यक्त्व ५२७, ७०४-५, ७३३ ।। चार दोषयुक्त जीवको नही होता ६९०, कैसे सिद्ध भगवान ५८१; °का सुख ७३५; ०के भेद ७८०, प्रगट हो? ७२१, ७४६-७, कैसे ज्ञात हो? आत्मा लोकालोक प्रकाशक ८२६ ७२५, ०और व्रत ७३८-९, ०अन्योक्तिसे अपना सिद्धान्त ७६४-५, ०की रचना असत् नही ६९६, ०ज्ञान दूपण बताता है ७५६, केवलज्ञानसे कहता है ७५७ । ४०६, ०बोध ४१४। सम्यक्त्व मोहनीय ७२२ सिद्धियोग ३२०,३८०.४७३ सम्यग्ज्ञान ५३१, ५६९, ५९४ सिद्धिलब्धि ७९४, ८०० सम्यग्चारित्र ५३१, ५६९, ५९४. सुख, सच्चा किसमें है ? ३४, सम्बन्धी विचार १०४ - सम्यग्दृष्टि ६९०,७३७, ०की दशा ३८४-५, ७३३, अतरमें २१५, का समय कौनसा ? २३६, ०का ७९३; अभक्ष्य आहार करता है ? ,६२०, के मार्ग ६३१ गुण ७२९ सुखभास ३७५ सरलता, धमके वीजरूप ८ सुदेव, भक्ति २७; तत्त्व ६५ सरागसयम ७१८ सुधारस ३९१-२, ३९४

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